इन्दौर (मप्र)।
साहित्यिक पत्रिकाओं के सम्पादकों के कारण हिन्दी भाषा का विकास हुआ। हजारीप्रसाद द्विवेदी, भारतेन्दु हरिशचन्द्र जैसे मनीषियों ने गुलाम देश में भाषा को जीवन्त करने का आह्वान किया। हिन्दी खड़ी हुई और जनता ने इसे स्वीकार किया। हिन्दी पत्रकारिता के २०० वर्ष का इतिहास संघर्षमय रहा है। आज भाषा के साथ हमारा रिश्ता कमजोर होता जा रहा है। हिन्दी को वोट मांगने और व्यवसाय की भाषा न बनाएं।
पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि (भोपाल) के प्रो. संजय द्विवेदी ने यह विचार व्यक्त किए। प्रसंग रहा श्री मध्य भारत हिन्दी सहित्य समिति, इंदौर द्वारा अनवरत प्रकाशित पत्रिका ‘वीणा’ के ९९वें वर्ष के प्रवेशांक अंक के लोकार्पण का।
कार्यक्रम में माँ सरस्वती की वन्दना डॉ. शशि निगम ने प्रस्तुत की। ‘वीणा’ के प्रकाशन की कल्पना करने वाले पं. सरनूप्रसाद तिवारी की मूर्ति पर माल्यार्पण किया गया तथा प्रवेशांक का लोकार्पण भी किया गया। स्वागत उद्बोधन प्रबंध मंत्री घनश्याम यादव ने दिया। शताब्दी की ओर आग्रसर ‘वीणा’ का इतिहास सम्पादक राकेश शर्मा द्वारा प्रस्तुत किया गया।
अतिथियों का स्वागत अरविन्द ओझा, सदाशिव कौतुक ने किया।
इस अवसर पर प्रदीप ‘नवीन’ द्वारा रचना पाठ किया गया।
अतिथि परिचय एवं संचालन डॉ. अंतरा करवड़े और वसुधा गाडगिल द्वारा किया गया। आभार प्रचार मंत्री हरेराम वाजपेयी ने व्यक्त किया।