सोनीपत (हरियाणा)।
प्रभु श्री राधा गोपीनाथ जी महाराज की कृपा से संचालित एवं हिन्दी भाषा-सनातन संस्कृति हेतु कृत संकल्पित कल्पकथा साहित्य संस्था परिवार ने २१८वीं आभासी काव्यगोष्ठी आयोजित की, जो बेटियों के नेह और सम्मान की भावनाओं को समर्पित रही। अध्यक्षता सीवान के साहित्यकार बिनोद कुमार पाण्डेय ने की। मुख्य अतिथि गुरुग्राम से विद्वत सृजनकार शोभा प्रसाद रही।
संस्था की संवाद प्रभारी श्रीमती ज्योति राघव सिंह ने बताया कि ५ घंटे से अधिक चले इस ‘अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस’ के विशेष काव्य आयोजन में विभिन्न प्रांतों से साहित्यकारों ने अपने सृजन कौशल से सृजित काव्य रचनाओं द्वारा संध्या को शोभायमान कर दिया। कोंच के आशुकवि भास्कर सिंह ‘माणिक’ के मंच संचालन में कार्यक्रम का शुभारंभ नागपुर से जुड़े विद्वान साहित्यकार विजय रघुनाथराव डांगे ने संगीतबद्ध गुरु वंदना, गणेश वंदना एवं सरस्वती वंदना के साथ किया। डॉ. राखी गोयल आकांक्षा ने ‘अनुत्तरित प्रश्न’ शीर्षक की रचना में बताया ‘बेटियाँ घर की शान होती हैं।’ डॉ. गीता पाण्डेय ने लड़कियों की ऊंची उड़ान को स्वर देते हुए कहा- ‘ऊंची उड़ान भरने लगी आज बेटियाँ, अंबर को चूमने लगीं आज बेटियाँ।’ कांकेर से ममता साहू ने ‘बेटियाँ’ शीर्षक से कविता में भाई-बहिन के प्रेम पर कहा ‘राखी की कोमल पहचान, भाई की मुस्कान है बेटियाँ।’
अमित पण्डा ने पुत्री के लिए पिता की भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए रचना सुनाई तो नंदकिशोर बहुखंडी ने समाज से बालिकाओं की अपेक्षा को स्वर दिया।
कार्यक्रम अध्यक्ष ने किशोरियों को समर्पित शिक्षाप्रद काव्य में कहा, ‘बेटी दुर्गा, बेटी सरस्वती, बेटी ही देती संतान को सुमति।’ संतोष मिश्र ‘असाधु’, प. अवधेश प्रसाद मिश्र ‘मधुप’, श्री डांगे, ज्योति प्यासी, सुनील कुमार खुराना, डॉ. श्याम बिहारी मिश्र, शोभा प्रसाद, भगवानदास शर्मा प्रशांत, विष्णु शंकर मीणा, राधाश्री शर्मा, पवनेश मिश्र आदि ने भी काव्य पाठ से मंच को सुशोभित किया। विशेष आकर्षण सनातन संस्कृति की उन्नत चिकित्सा तकनीकी रही, जिसका उदाहरण देते हुए ज्योति प्यासी ने द्वापर युग में गर्भ प्रत्यारोपण प्रक्रिया में माता देवकी के गर्भ को माता रोहिणी के गर्भ में संकर्षण विधि से प्रत्यारोपित करना बताया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री पाण्डेय ने प्रस्तुत काव्य रचनाओं की चर्चा करते हुए समाज में बेटियों को सशक्त बनाने के साथ गरिमापूर्ण आचरण के लिए तैयार होने का आव्हान किया। शोभा प्रसाद ने कार्यक्रम की सफलता पर संतोष प्रकट करते हुए बेटी-बेटे दोनों को समान रूप से उत्तरदायित्व निभाने में सक्षम बनाए जाने पर बल दिया।