कुल पृष्ठ दर्शन : 6

गाँव की नारी

बबिता कुमावत
सीकर (राजस्थान)
*****************************************

माटी की गंध,
ओस पर भी चलें
उगे सूरज।

घूँघट नीचे,
सपने हैं गहरे
मुस्कान खिली।

हाथ मेंहदी,
संग हल की धुन
धरा मुस्काए।

नदी किनारे,
घड़ा भी मुस्कुराए
साँझ उतरी।

धूप तपती,
मन में ठंडी छाँव
गाँव की नारी।

माटी की गोद,
सपनों को सींचती
गाँव की नारी।

तन हलका,
आँखों में है उत्साह
साहसी मन।

रास्ते पर है,
पायल की झंकार
गीत जोशीले।

ओस-से पाँव,
भोर की चिरैया वो
दिन जगाती।

घड़ा रखे है,
उड़ती चुनर है
गर्व की छाया।

हँसती बोले,
फूलों-जैसी सादगी
धरती बेटी।

काँटों के बीच,
महके सीधा मन
कमल नारी।

सावन बूँद,
झर मन में गिरे
सपना खेती।

चूल्हे का धुआँ,
फिर भी उजियारा
उसकी हँसी।

सहन करो,
धरा का प्रतिबिंब
गाँव की नारी॥