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सँभल-सँभलकर चलना होगा

कल्पना शर्मा ‘काव्या’
जयपुर (राजस्थान)
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जो हम चाहें सुखमय जीवन,
विपत-कसौटी कसना होगा।
ज़िन्दगी है राह काँटों भरी,
सँभल-सँभल कर चलना होगा॥

जीवन तुला पर फूल और काँटे,
काँटों का पलड़ा भारी बहुत।
हम तो दूर रहें इनसे पर,
इनको हमसे प्यार बहुत।
पलकों से ही इन्हें हटाकर,
आगे हमें निकलना होगा॥
ज़िन्दगी है राह…

दु:ख-दर्दों के चौराहे पर,
झूठे सुख के दर्शन मिलते।
दो दिन की खुशियों के पीछे,
ग़म भी आकर गले हैं मिलते।
ग़म को गले का हार बनाकर,
आदर्शों में सिमटना होगा॥
ज़िन्दगी है राह…

तप-त्याग-प्रेम अपनाकर,
निज कर्त्तव्य निभाना है।
कसें कसौटी मानवता की,
अधिकार सिद्ध कर पाना है।
अँगारों में तप ‘काव्या’,
स्वर्ण-समान चमकना होगा॥
ज़िन्दगी है राह…

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