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अर्थव्यवस्था में प्राण फूंकने का प्रयास

ललित गर्ग
दिल्ली

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कोरोना महामारी के कारण अस्त-व्यस्त हुई अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से एक बार फिर प्रोत्साहन पैकेज घोषित किए गए हैं,यह सुस्त अर्थ-व्यवस्था को गति देने में कितने सहायक होंगे,यह भविष्य के गर्भ में है,लेकिन उसका मूल मकसद बाजार को सक्रिय करना,मांग पैदा करना है। मांग पैदा होगी,तभी उत्पादन पर जोर पकड़ेगा और निवेश का रास्ता खुलेगा। कोरोना महाव्याधि एवं प्रकोप के कारण जीवन पर अनेक तरह के अंधेरे व्याप्त हुए हैं,जिनमें सबसे ज्यादा प्रभावित बाजार हुआ है। बाजार में मांग,खपत,उत्पादन,निवेश जैसे अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार हिल गए हैं। ऐसे में अब पहला काम अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने त्यौहारों से पहले लगातार कोरोना संक्रमण के नए मामलों में जो सकारात्मक रूख दिखने लगा है,उसका फायदा उठाते हुए तीसरा बड़ा पैकेज घोषित किया है।
एक लंबे इंतजार के बाद कोरोना के हवाले से कुछ अच्छी खबरें आने लगी है,साल के आखिर में या नए साल की शुरुआत में टीका (वैक्सीन) भी उपलब्ध होने की संभावनाएं हैं। इन बदलती फिजाओं एवं छंटते निराशा के बादलों के बीच सरकार ने भी सूझ-बूझ से काम लेते हुए अनुकरणीय पैकेज आर्थिक गतिविधियों में प्राण फूंकने के लिए घोषित किया है।
वक्त की नजाकत को देखते हुए अर्थव्यवस्था में आई जड़ता दूर करने और बाजार में नई मांग पैदा करने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ७३ हजार करोड़ रुपए की छूटों,राहतों और अनुदानों की घोषणाएं की है,जिनके जरिए उनकी कोशिश यह है कि कोरोना महामारी के रूप में उपभोक्ताओं के बीच खर्च करने को लेकर बनी हुई हिचक एवं उदासीनता किसी तरह टूटे और अर्थ की रुकी हुई गाड़ी आगे बढ़े और बाजार में रौनक आए। इन घोषणाओं का समय-चयन शुभता एवं श्रेयस्करता का प्रतीक इसलिए है कि दशहरा,दिवाली से लेकर छठ,क्रिसमस और नव वर्ष तक का त्योहारी सीजन अब शुरू होने वाला है।
बाजार और अर्थ व्यवस्था को गति देने के लिए जनता में विश्वास का वातावरण बनाना जरूरी है, किसी अशुभ के घटने की आशंका के कारण लोग अपनी जरूरतों एवं खर्चों को नियंत्रित करके बचत करने में जुटे हैं,उनका यह भय समाप्त हो और वे बचत की बजाय खर्चों पर बल दे तो अर्थ-व्यवस्था को जल्दी ही सुधारा जा सकता है। अभी तक हो यह रहा है कि लोग अर्थव्यवस्था की हालत को देख घबराए हुए हैं और उनका ध्यान बचत पर ही टिका है।
राज्य सरकारों के लिए भी केन्द्र ने पिटारा खोला है। पूंजीगत खर्चों के लिए केन्द्र राज्यों को बारह हजार करोड़ बिना ब्याज के कर्ज के रूप में देगा। इसमें दो राय नहीं कि मौजूदा हालात में सरकार के भी हाथ बंधे हुए हैं। महंगाई और राजकोषीय घाटे को काबू में रखने का दबाव उस पर है।
देश में आबादी का बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों का है। इसके अलावा निजी क्षेत्र के कामगारों की तादाद भी काफी बड़ी है,पर निजी क्षेत्र में भी कामगारों के बड़े हिस्से को सरकारी कर्मचारियों के समान न तो ज्यादा वेतन भत्ते मिलते हैं,न पेंशन जैसी कोई सुरक्षा है,जबकि अर्थव्यवस्था में इस वर्ग की भागीदारी भी बड़ी है।
सरकार ने अपने कर्मचारियों को दस हजार रुपए उधार देने का भी ऐलान किया है,पर वह भी खरीददारी पर ही खर्च करना होगा। अब तो अनियन्त्रित इच्छा,अनियंत्रित आवश्यकता और अनियंत्रित उपभोग वाला समाज निर्मित करना हमारी विवशता है। भले ही ये तीनों आदर्श- अर्थव्यवस्था के विपरीत हो,लेकिन कोरोना महामारी से उपजी आर्थिक अस्तव्यस्तता को संतुलित करने के लिए यही एक रास्ता है।

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