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‘वसुधैव कुटुम्बकम’ से बताया भारत का विश्व के प्रति योगदान

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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७५ वर्ष पूर्व द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में ‘नवीन विश्व व्यवस्था’ की दिशा में २४ अक्तूबर १९४५ को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई थी,और संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर करने की ७५वीं वर्षगांठ के अवसर पर ‘यूएन मसौदा घोषणा-पत्र’ पर हस्ताक्षर किए जाने थे,लेकिन देरी हुई, क्योंकि सभी सदस्य देश अभी तक किसी एक समझौते तक नहीं पहुंच सके। सभी के ध्यानार्थ कि,संयुक्त राष्ट्र संघ मसौदे के ३ प्रमुख अंगों के सुधार की मांग अनेक देशों द्वारा अरसे से की जा रही है-सुरक्षा परिषद, महासभा व आर्थिक और सामाजिक परिषद। जो हस्ताक्षर किए जाने हैं,उसमें १२ प्रतिबद्धताएं निर्धारित हैं-हम किसी को पीछे नहीं छोड़ेंगे,हम अपने ग्रह की रक्षा करेंगे,हम शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कार्य करेंगे,हम अंतर्राष्ट्रीय नियमों और मानदंडों का पालन करेंगे,हम महिलाओं और लड़कियों को केन्द्र में रखेंगे,हम विश्वास पैदा करेंगे,हम सभी के लाभ के लिए नवीन प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देंगे,हम संयुक्त राष्ट्र को आवश्यक सुधार करेंगे,हम वित्त पोषण सुनिश्चित करेंगे,हम साझेदारी को बढ़ावा देंगे,हम युवाओं को सुनेंगे तथा उनके साथ कार्य करेंगे एवं हम भविष्य में अधिक तैयार रहेंगे।
इसी दौरान संयुक्त राष्ट्र की वर्षगांठ के अवसर पर १९३ सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय बैठक आयोजित की गई। इस बार चर्चा के सत्र में सभी बड़े देशों के नेताओं ने अपने भाषणों में अपने राष्ट्रीय स्वार्थों को परिपुष्ट किया,परन्तु इसके उलट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ ऐसे बुनियादी सवाल उठाए,जो विश्व राजनीति के वर्तमान नक्शे को ही बदल सकते हैं। उन्होंने सुरक्षा परिषद के मूल ढांचे को ही बदलने की मांग रख दी।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी ने स्पष्ट बताया कि संयुक्त राष्ट्र ‘विश्वसनीयता के संकट’ से जूझ रहा है,यानि व्यापक सुधारों के अभाव में संयुक्त राष्ट्र पर भरोसे की कमी का संकट मंडरा रहा है। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि हम पुराने हो चुके स्वरूप के साथ आज की चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर सकते।
इसके परिप्रेक्ष्य में भारत की ५ मुख्य माँगें हैं-
संयुक्त राष्ट्र में बहुपक्षीय प्रणाली बने,जहाँ सबकी बराबर बात पर ध्यान दिया जाए,सुरक्षा परिषद की संरचना बदल कर इसमें और सदस्यों को शामिल किया जाए,जलवायु परिवर्तन पर सभी यानि पूरी दुनिया एकजुटता प्रदर्शित करें,असमानता को कम करने पर ध्यान दें-साथ ही संघर्ष रोकने पर भी ध्यान देंं और डिजिटल तकनीक का पूरा फायदा उठाया जाए।
उपरोक्त तथ्यों का समावेश करते हुए संक्षेप में प्रमं ने बता दिया कि हम भी संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के उस महान दृष्टिकोण का हिस्सा हैं,जो संस्थापक हस्ताक्षरकर्ताओं पर लागू है। उन्होंने अपने दर्शन ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का उलेख कर उसका अर्थ यानि भारत हमेशा ‘दुनिया को एक परिवार’ मानता है,भी बता दिया।
इसी प्रकार इन्होंने वैश्विक संस्था संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधित किया,जिसमें कुछ बेहद जरूरी सवालों जैसे-कोरोना महामारी,टीका,नशे से लेकर आतंकवाद सहित तमाम जरूरी मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए भारत की भूमिका यूएन के शांति मिशन में कितनी महत्वपूर्ण रही है,की याद भी दिलाई।
संक्षेप में ही सही,लेकिन बहुत बढ़िया ढंग से प्रमं ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के हिसाब से भारत का विश्व के प्रति योगदान बता दिया और इन तथ्यों पर पुरजोर तरीके से अपनी बात भी रख दी-बदलते वक्त के मुताबिक यूएन में बदलाव कब,कोरोना से निपटने में यूएन की भूमिका क्या,यूएन में सुधार का इंतजार कब तक,यूएन में भारत की निर्णायक भूमिका कब, भारत से यूएन का भेदभाव कब खत्म होगा एवं कब तक भारत को फैसले से अलग रखा जाएगा ?
अब ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ वाला श्लोक भावार्थ सहित-
‘अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्॥’
भावार्थ-यह मेरा है और वह दूसरे का,ऐसी सोच छोटी बुद्धि वाले रखते हैं। उदार चरित्र यानि समझदार लोगों के लिए तो पूरी पृथ्वी एक परिवार के समान है।

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