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कट्टरता यानि दृढ़ता,धर्म का उन्माद नहीं

अरशद रसूल
बदायूं (उत्तरप्रदेश)
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मौजूदा दौर में ‘कट्टर’ शब्द का एक नया मतलब सामने आया है। इस शब्द का विकसित नया अर्थ राजनीति में भी खूब प्रचलित हुआ है। सकारात्मक रूप से मैंने इस शब्द को देखा,पढ़ा और समझा है। कट्टर शब्द ऐसा बिल्कुल नहीं है,जैसा इसको पेश किया जा रहा है।
कट्टर का शाब्दिक अर्थ ‘अपने मत या विश्वास पर दृढ़ रहने वाला’ है। जॉर्ज संतायन के अनुसार,-“जब लक्ष्य ही भूल गया हो तब अपने प्रयास को दोगुना बढ़ा देना कट्टरपन है। कट्टर व्यक्ति बहुत कड़ाई से किसी विचार का पालन करता है तथा उससे भिन्न या विपरीत विचारों को सहन नहीं कर सकता। अर्थात किसी भी धर्म,जाति,वर्ण या कोई भी राजनीतिक,धार्मिक,सामाजिक संगठन के लिए पूरी तरह समर्पित होकर कार्य करना, उसे मानना।”
किसी एक धर्म विशेष की बात नहीं करता। मेरा मतलब है दुनिया के सभी धर्म आपस में एकता,भाईचारा,दया,करुणा,परस्पर सहयोग, दूसरों की मदद करना,जरूरत पर दूसरों के काम आना,दैनिक जीवन में होने वाले विभिन्न क्रिया-कलापों को बेहतर तरीके से करने का तरीका सिखाते हैं। धर्म अलग होते हुए भी अनगिनत समानताएं पाई जाती हैं।
इसके उलट आज के परिवेश में धर्म की परिभाषा ही बदल दी जा रही है। लोग धर्म को अपने फायदे के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। वैसे तो दुनिया का कोई भी धर्म गलत नहीं है। तमाम चीजें ऐसी हैं जो सभी धर्मों में एकसमान है। इसके बावजूद तमाम लोग ऐसे हैं जो धर्म को सिर्फ अपने फायदे के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। धर्म में अपने हिसाब से संशोधन,उसका अपने हिसाब से प्रयोग करना एक आम बात हो गई है।
मुझे नहीं लगता,कोई भी धर्म इस बात की शिक्षा देता हो कि किसी का दिल दुखाओ, किसी का सर कलम कर दो या किसी को पीट कर मार डालो। इस समय शायद हमारे देश में सबसे ज्यादा धर्म के नाम पर ही उन्माद और वैमनस्यता फैल रही है। अगर बात विचारों की दृढ़ता की है तो हमें अपने राष्ट्र भावना के प्रति,सामाजिक सोच,धर्म, राजनीतिक विचारधारा,आचरण,व्यवहार के प्रति दृढ़ यानी कट्टर होना चाहिए।

परिचय-अरशद रसूल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला बदायूं (उ.प्र.)में है। ८ जुलाई १९८१ को जिला बदायूं के बादुल्लागंज में जन्मे अरशद रसूल को हिन्दी,उर्दू,अंग्रेजी, संस्कृत एवं अरबी भाषा का ज्ञान है। एमए, बीएड,एमबीए सहित ग्रामीण विकास में स्नातकोत्तर डिप्लोमा,मुअल्लिम उर्दू एवं पत्रकारिता में भी आपने डिप्लोमा हासिल किया है। इनका कार्यक्षेत्र-संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अंतर्गत ईविन परियोजना में (जिला प्रबंधक) है। सामाजिक गतिविधि में आप संकल्प युवा विकास संस्थान के अध्यक्ष पद पर रहते हुए समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वासों के खिलाफ मुहिम, ‘कथित’, संकुचित धार्मिक विचारधारा से ऊपर उठकर देश और सामाजिकता को महत्व देने में सक्रिय होकर रचनाओं व विभिन्न कार्यक्रमों से ऐसी विचारधारा के लोगों को प्रोत्साहित करते हैं, साथ ही स्वरोजगार,जागरूकता, समाज के स्वावलंबन की दिशा में विभिन्न प्रशिक्षण-कार्यक्रमों का आयोजन भी करते हैं। आपकी लेखन विधा-लघुकथा, समसामयिक लेख एवं ग़ज़ल सहित बाल कविताएं हैं। प्रकाशन के तौर पर आपके नाम -शकील बदायूंनी (शख्सियत और फन),सोजे वतन (देशभक्ति रचना संग्रह),प्रकाशकाधीन संकलन-कसौटी (लघुकथा),आजकल (समसामयिक लेख),गुलदान (काव्य), फुलवाऱी(बाल कविताएं)हैं। कई पत्र-पत्रिका के अलावा विभिन्न अंतरजाल माध्यमों पर भी आपकी रचनाओं का प्रकाशन जारी है। खेल मंत्रालय(भारत सरकार)तथा अन्य संस्थाओं की ओर से युवा लेखक सम्मान,उत्कृष्ट जिला युवा पुरस्कार,पर्यावरण मित्र सम्मान,समाज शिरोमणि सम्मान तथा कलम मित्र सम्मान आदि पाने वाले अरशद रसूल ब्लॉग पर भी लिखते हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-बहुधा आकाशवाणी से वार्ताओं-रचनाओं का प्रसारण है। लेखनी का उद्देश्य-रचनाओं के माध्यम से समाज के समक्ष तीसरी आँख के रूप में कार्य करना एवं कुरीतियों और ऊंच-नीच को मिटाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कबीर,मुशी प्रेमचंद, शकील बदायूंनी एवं डॉ. वसीम बरेलवी तो प्रेरणापुंज-खालिद नदीम बदायूंनी,डॉ. इसहाक तबीब,नदीम फर्रुख और राशिद राही हैं। आपकी विशेषज्ञता-सरल और सहज यानी जनसामान्य की भाषा,लेखनी का दायरा आम आदमी की जिन्दगी के बेहद करीब रहते हुए सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन करता है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“भारत एक उपवन के समान देश है,जिसमें विभिन्न भाषा, मत,धर्म के नागरिक रहते हैं। समता,धर्म और विचारधारा की आजादी इस देश की विशेषता है। हिन्दी आमजन की भाषा है, इसलिए यह विचारों-भावनाओं की अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट माध्यम है। इसके बावजूद आजादी के ६० साल बाद भी हिन्दी को यथोचित स्थान नहीं मिल सका है। इसके लिए समाज का बुद्धिजीवी वर्ग और सरकारें समान रूप से जिम्मेदार हैं। हिन्दी के उत्थान की सार्थकता तभी सिद्ध होगी,जब भारत में हिन्दी ऐसे स्थान पर पहुंच जाए,कि हिन्दी दिवस मनाने की जरूरत नहीं रहे।”