हो गीत का फेरा मेरे घर
विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)************************************ यह नियम नियति का है कैसा,है जगत का डेरा मेरे घर।ये भाव कहीं जाकर विचरें,हो गीत का फेरा मेरे घर॥ सूरज से नाता मैं न रखूं,पर किरणें बनी सहेली हैंआगे-पीछे दायें-बायें,अनबूझी अजब पहेली हैं।वह सूर्य बसा है सूने में,किरणों का बसेरा मेरे घर॥ शशि पर भी मैं आकृष्ट नहीं,पर तारे मुझे रिझाते हैंअपनी … Read more