ज़िंदगी का ताना-बाना
राधा गोयलनई दिल्ली****************************************** ज़िन्दगी तुझसे कभी शिकवे नहीं किए,तेरे दिए हर ज़ख्म को हम हँस के सह गएन तयशुदा तारीख थी, न तयशुदा समय,विधिना ने कैसा खेल ये खेला था असमय ?हमको संभलने तक का इक मौका नहीं दिया,जीवन मेरा खुशहाल था, बेरंग कर दियाकैसा अजीब ‘ताना-बाना’ तूने बुन दिया ?उसका सिरा, सिरे से गायब … Read more