किरदार-ए-ज़िंदगी
दीप्ति खरेमंडला (मध्यप्रदेश)************************************* किरदार-ए-ज़िंदगी,कुछ इस तरह निभा लियाकिरदार को जीते-जीते,खुद को भुला दिया। आइना भी भुला बैठा,शख्सियत हमारीकिरदार को ही हमारा,चेहरा समझ लिया। तमाम उम्र जीते रहे,अलग-अलग किरदारों कोखत्म हुआ तब खेला,रंगमंच का पर्दा जो गिर गया। सुकून है बस इतना,याद रखेंगे लोग मुझे उन किरदारों में।तमाम उम्र शिद्दत से,जिनको हमने जिया॥