त्योहार के बाद का खालीपन
बबिता कुमावतसीकर (राजस्थान)***************************************** दीपक बुझे,धुआँ खोता खुशबूरात रो पड़ी। रंग उतरे,आँगन सूना बोलादम ठिठके। छत अकेली,एक दीया है बुझास्मृति चमकी। सड़कें सूनी,ढोलक गूँज गईधूल ही नाची। पेड़ों के नीचे,गिरे कागज़ फूलमौन बिछा है। मीठी बातों का,स्वाद है फीका पड़ाचाय अकेली। बदले बच्चे,फुलझड़ियाँ सोईंआँगन ठंडा। शहर थका,बिजली सुस्त हुईनींद गहरी। मन खाली है,जैसे गीत अधूरासुर भटके। … Read more