आ अब लौट चलें उस छाँव में…
राधा गोयलनई दिल्ली****************************************** “राजू! हम यहाँ परदेस में आ तो गए हैं, लेकिन अब इतनी मेहनत नहीं होती। अच्छी-भली हमारी खेती की जमीन थी। खेती-बाड़ी करते थे। पता नहीं, किस झोंक में शहर में मजदूरी करने आ गए। सड़ी गर्मी में खाना भी खुद पकाना पड़ता है। फिर तपती धूप में दिन भर सर पर … Read more