इसमें राम रमा है

विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)************************************ पृथ्वी दिवस विशेष…. मत इसका परिचय पूछो तुम,यह तो धरती माँ है।तन से सुदृढ़ सुकोमल मन से,ममता की प्रतिमा है॥ आँधी पानी ओले झेले,बारूदी गोलों से खेलेकोई भी आ जाय बवंडर,हर संकट से पंगा लेले।पालन पोषण करती जग का,बड़ी अजब महिमा है। सूरज आता इसे तपाने,चंदा शीतलता दर्शानेनीर बरस कर फसल उगाता,वायु विचरता … Read more

कवि की कविता

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’रावतसर(राजस्थान) ****************************************** उठती है मन से जो पीड़ा,घायल मन को तड़पाती है।निसृत होते जो भाव वही,प्यारी कविता बन जाती है॥ कवि जब भी पीड़ित होता है,तन्हा खुद को कर लेता हैसाँसों में बसी हुई कविताउसको श्रृंगारित करता है।मन प्राण बसे हैं कविता में,कविता जीवन की थाती है।निसृत होकर मन…॥ कहता है उसको कुसुम … Read more

सीमा से आगे पग न बढ़ाना

विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)************************************ सपना न देखो ऐसा सुहाना,कि अब सरल है भारत को पाना।सीमा से आगे पग न बढ़ाना,वर्ना लगा देंगे हम ठिकाना॥ करता है पागल कैसी मनमानी,क्या इस वतन की ताकत न जानीये है वो भारत डरते हैं जिससे,सारे जहां के आँधी व पानी।सोचा न समझा लड़ने को आया,मुट्ठी में लेकर अपना खजाना…॥ पिटना है … Read more

बनी एक दुनिया

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ***************************** बनी एक दुनिया हुआ जग हमारा।गगन ने किया क्या न जाने इशारा॥ मुकद्दर सजे तो,हो बारिश सुखों की,कभी गर्दिशें फिर,न बनतीं दुखों की।न महसूस करता,कभी दिल दुखों को,खुदाई दिखाती सुखों का नजारा।तभी तो गगन भी करे ये इशारा,बनी एक दुनिया…॥ कहा था किसीने हमेशा सजेगा,तुझे जिन्दगी में कभी गम … Read more

संसार बनाता चल

विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)************************************ तू अपनी रचनाओं का संसार बनाता चल।नयी सृष्टि के लिये नये उपहार बनाता चल॥ कल के दिन तू निराकार हो जायेगा,उसके जैसा कलाकार हो जायेगाजो रचना रच देगा होगी अजर-अमर,जग में निश्चय चमत्कार हो जायेगा।एक नया ब्रह्मांड एक विस्तार बनाता चल,नयी सृष्टि के लिये नया उपहार बनाता चल…॥ पंच तत्व की कविता नूतन … Read more

कर्मों से जीवन खिलता

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ***************************** रचनाशिल्प:२१२२ २११२ २२२२ २२२२ जन्म मिलता मात-पिता से, कर्मों से जीवन खिलता।रूप प्रभु का मात-पिता में, जिसने देखा वो खिलता॥ भाव श्रद्धा प्रेम बनें तो, सुख जीवन में फलते हैं,त्याग करते स्वार्थ बिना जो, प्रभु चरणों में पलते हैं।सृष्टि न्यारी सीख सजाती, समझें तो जीवन खिलता,जन्म मिलता मात-पिता से…॥ … Read more

दगा तो न दोगे!

आशा आजाद`कृति`कोरबा (छत्तीसगढ़) ******************************************* हमें तुम भुलाकर दगा तो न दोगे।मुझे गम थमाकर रूला तो न दोगे॥ कभी हो सताते कभी हो रुलाते,मिलन आस कितनी सुनो हम बताते।हाथ आगे बढ़ाकर छुड़ा तो न लोगे,हमें तुम भुलाकर दगा तो न दोगे…॥ सभी गम सहेंगे करो तुम इशारा,सदा हम बनेंगे हृदय का सहारा।कसम तुम बँधाकर भुला तो … Read more

आओ, पेड़ लगाएं

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’रावतसर(राजस्थान) ****************************************** आओ मिलकर पेड़ लगायें,धरती का आँगन महकायें। जीवन दाता वृक्ष हमारे,प्राण वायु देते हैं सारे।वृक्ष हमें सुख छाया देते,बदले में कुछ भी नहिं लेते। बनते हैं खिड़की-दरवाजे,घर सारा शोभित हो साजे।इनकी छाया में बैठे हमगर्म हवा से मुक्ति पायें। इस लकड़ी से बनता पलना,झूले उसमें प्यारा ललना।लकड़ी से भोजन बन जाता,अपना … Read more

बंद करो अंधा संग्राम

विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)************************************ तलवारें खींचे पर आँखों को मींचे,नफरत के फटे शामियानों के नीचे।बंद करो अंधा संग्राम,भाई का भाई के नाम॥ आयातित ढोल और आयातित ताशे,अपनी सीमाओं पर हो रहे तमाशेशहर-शहर गाँव-गाँव दहशत के कोहरे,राजनीति खेल रही विघटन के मोहरे।फैला है घर-घर कोहराम,बंद करो अंधा संग्राम…॥ जाड़े की धूप हो कि गर्मी के साये,सबके सब पागल … Read more

और मुझे भी गाने दो

विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)************************************ प्रकृति परी तुम नाचो गाओ,और मुझे भी गाने दो। उठने दो तुम तरल तरंगें,मेरे भी उद्गारों मेंकरो न रूपसी कमी अल्प भी,दिये हुये उपहारों में।सरिता बन लहराना चाहूं,तो मुझको लहराने दो।प्रकृति परी…॥ भीषण एक गर्जना उठने,दो तुम मन केॆ भावों मेंबनूं पू्र्णता कभी तुम्हारे,मैं भी अमिट अभावों में।घन बन मधु बरसाना चाहूं,तो मुझको … Read more