ईश्वर तुम रुष्ट हो

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश)******************************************* बहुत हुई इस बार तो, मानसून की मार।इंसानों की बस्तियाँ, गईं आज हैं हार॥ दिया प्रकृति ने देश को, चोखा इक संदेश।छेड़-छाड़ हो प्रकृति से, तो भोगो आवेश॥ बिगड़े किंचित संतुलन, तो होगा आघात।मौन संदेशा प्रकृति का, सौंप रहा जज़्बात॥ मानसून की मार का, रहा न कोई छोर।घबराये इंसान सब, पीड़ित … Read more

अभियन्ता प्रथम

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* हुआ जन्म संक्रान्ति में, कन्या भाद्र दिनांक।ब्रह्मा विश्वकर्मा पिता, अन्तिम दिन शुभांक॥ वसु प्रभास के आत्मज, योगसिद्ध सन्तान।कथा महाभारत विदित, हरिवंशी आख्यान॥ दुनिया अभियन्ता प्रथम, शिल्पकार संसार।देवलोक यांत्रिक प्रभो, महिमा अपरम्पार॥ नमन देव शिल्पी प्रभो, निर्माता संसार।सकल चराचर भूतगण, जीवन सुख आधार॥ वैज्ञानिक विज्ञान के, सकल यंत्र निर्माण।रची अलौकिक … Read more

हिन्दी हिन्दुस्तान की पहचान

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* मातृभाषा हिन्दी बहुल, विलसित देश-विदेश।लोकतंत्र जन भावना, समरसता संदेश॥ हिन्दी हिन्दुस्तान की, आजादी पहचान।सब जन सब हित जोड़ती, राष्ट्र भक्ति जय गान॥ वैज्ञानिक भाषा सहज, व्याकरणिक परिमार्य।राष्ट्र राजभाषा मधुर, बोधगम्य स्वीकार्य॥ हिन्दी में बोली विविध, संस्कृतियों का मेल।भारत संघी एकता, नवरस गुण गठमेल॥ अति विशाल हिन्दी परिधि, अनुपमेय साहित्य।गद्य-पद्य … Read more

पीपल की सेवा

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* वृक्षों में तरु श्रेष्ठतर, पीपल विष्णु निवास।भक्ति भाव पूजन करें, हो धन सुख यश पास॥ पीपल तरु पावन धरा, पूजें नित शनिवार।मिले सफलता ज़िंदगी, सब दुख से उद्धार॥ पीपल तरु सेवा सतत, हो कठिनाई दूर।दीप धूप जल अर्घ्य से, हों शनि मुदित जरूर॥ बरसे शनि की बहु कृपा, सकल … Read more

बाढ़ बनी कहर

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* बरसाती मौसम कहर, ढाया है आषाढ़।भारत चहुँ सागर बना, सर्व विनाशी बाढ़॥ धन जन पशु घर सब बहे, भीषण जल सैलाब।आहत राहत याचना, जनता है बेताब॥ बाढ़-आंधियाँ साथ में, बिजली का आघात।जान माल बलि ले गई, निर्मम यह बरसात॥ कहीं मेघ वरदान है, कहीं बाढ़ बन काल।बही प्रजा जलधार … Read more

अरमानों की डोर

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* खोल डोर चाहत मनुज, उड़ पतंग आकाश।टकराते सपने हृदय, टूटे डोरी आश॥ धेय सफलता व्योम में, मिहनत भरी उड़ान।कट पतंग बाधा विविध, क्षत विक्षत अरमान॥ अरमानों की डोर से, जीवन जुड़े पतंग।संयम धीरज आत्मबल, भरे उड़ान उमंग॥ मिले वक्त जो कुछ क्षणिक, उड़ो पतंग समान।कटे डोर कब ज़िंदगी, है … Read more

राह दिखाएँ ईश की

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* गरिमामय महिमा कृपा, ज्ञान सिन्धु आचार्य।मातु पिता भाई सखा, पूर्ण शिष्य सब कार्य॥ अखंड चरित गुरु आपका, रूप मण्डलाकार।राह दिखाएँ ईश की, मुक्ति द्वार संसार॥ करूँ वन्दना गुरु चरण, बनूँ चरित इन्सान।समरस सद्भावन हृदय, शिक्षक दे वरदान॥ भर उमंग गुरु ज्ञान मन, फैले जगत प्रकाश।शिक्षा संजीवन मनुज, पूर्ण ज़िंदगी … Read more

नव उमंग उल्लास

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* नव उमंग उल्लास मन, भरे काव्य युव चित्त।भाव समादर श्रेष्ठ में, नीति प्रीति आवृत्त॥ शिक्षा हो सब जन सुलभ, भूख प्यास से त्राण।रोजगार सबको मिले, न्याय नीति कल्याण॥ कुसुमित हो उन्नति कुसुम, महके सुखद उमंग।समरसता सागर उठे, लहरों प्रीति तरंग॥ बेकारी सबकी मिटे, मँहगाई बदरंग।धनी दीन निर्भेदता, जनमत प्रीति … Read more

आना फिर तिथि चतुर्थी

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* आज गजानन विसर्जन, देव प्रथम विघ्नेश।मिटा देशद्रोही वतन, लम्बोदर बुद्धेश॥ मानवता अनमाेल जग, श्री गणपति दो सीख।क्षमा करो अपराध प्रभु, भक्त माँगता भीख॥ गणनायक जाओ प्रभो, करूँ विसर्जन आज।कठिन विदाई का समय, साश्रु नैन गणराज॥ पूजन अर्चन वन्दना, माना प्रभु बहु दोष।किन्तु कृपा प्रभु आपकी, हुआ हृदय संतोष॥ फिर … Read more

खेल बस जीभ का

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* खेल समझ बस जीभ का, शब्द लपकती जान।अन्तर्मन के भाव से, गढ़े मान-अपमान॥ नवरस से जिह्वा लसित, उच्चारण स्थान।तनिक प्रमादित चूक हो, पतन समझ इन्सान॥ सावधान मन वञ्चना, जीभ बने मनमीत।शब्द फँसे मन जाल में, जीभ बिगाड़े प्रीत॥ नित जिह्वा हो लालची, वाणी फँसे कुचक्र।मर्यादा तोड़े कहीं, कहीं दिलाये … Read more