बरस रहे अंगार
प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश)******************************************* आसमान से आज तो, बरस रहे अंगार।पैर जल रहे, सिर तपे, सूरज की है मार॥ सूरज तो अब हो गया, सचमुच में खूँखार।आज आदमी त्रस्त है, बरस रहे अंगार॥ सड़कों पर चाबुक चलें, ताप बना हथियार।नहीं किसी का ज़ोर है, बरस रहे अंगार॥ अच्छा-खासा आदमी, आज हुआ बेकार।बचना मुश्किल हो गया, … Read more