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आशीष

मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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दीवाली के लिए घर में रँग-रोगन का काम पूरा होते ही बच्चों ने मिसेज शर्मा के सामने अपनी अपनी फरमाइशें रख दीl दीपा कहने लगी-‘मम्मी,मेरे लिए २ सिंपल-सी ड्रेस और २ बढ़िया-सी दीवाली के लिए..l’
तभी बीच में ही वैभव हल्ला करते हुए कहने लगा-‘मम्मी,हर बार ये बिल्ली २ कहकर जाती है और ४ ले आती है,इस बार तो ये जितने लेगी,उतने ही कपड़े मैं भी लूँगा..!’
‘ठीक है भई लिस्ट बना लो न…क्या-क्या लेना है।’ मम्मी ने कहा तो ख़ुशी से चहकते दीपा बोली-…मम्मी मेरे लिए शूज़ भी…l”
‘हाँ-हाँ ठीक है भई,बच्चे जो बोलें ले आना,सालभर का त्यौहार है। ये कहते हुए मिस्टर शर्मा ने भी बच्चों का समर्थन किया। उसी समय पोंछा लगाते हुए नौकरानी गीता भी सकुचाते हुए मिसेज़ शर्मा से बोली-‘दीदी,इस बार मुझे भी दीवाली के पहले ही आप ईनाम दे देतीं तो,मैं भी बच्चों के लिए कपड़े ले लेती,मेरी मीना तो कब से चप्पल के लिए भी ज़िद कर रही है।’ ये सुनते ही मिसेस शर्मा अंदर कमरे की तरफ जाते हुए भुनभुनाई-‘सुन ली महारानी ने बच्चों की बातें.. अब इनको पहले पैसा चाहिए,इतनी गंदी आदत है ना इसकी। हर बार घर में जो भी बातें होती है उसमें इनकी डिमांड पहले ही हो जाती है।’ बात आई-गई हो गई। मिसेस शर्मा ने गीता की बात का कोई जवाब नहीं दिया…। अब बाज़ार से उन्होंने अपने,पति और बच्चों के लिए भी २-२ की जगह ३-३ कपड़ों के साथ-साथ घर की सजावट का सामान भी ख़रीदा…और इस बार भी नौकरानी गीता को त्यौहार से पहले ईनाम नहीं दिया।
और आज दीवाली है,पूरे घर को सजाया गयाl पूजा की तैयारी हो रही थी,तभी मीना फटी हुई फ्राक पहने हुए आई और बोली-माँ,घर में बाबू बुला रहे हैं, और बोले हैं अपनी दीदी से २-४ दीया और तेल भी माँग के ले आना..l
ये सुनते ही मिसेज शर्मा आगबबूला हो गई,-तुम लोग ना,अरे.! आज तो बख़्श दो,जो भी माँगना था तुम्हें त्यौहार के पहले ही मांगी होती और ये क्या आज इतने लोग आ रहे हैं...और मीना फटी फ्रॉक पहन कर आ गई..l
ये सुनते ही गीता की आँखें छलक गई..,जिसे पोंछने के लिए वो जैसे ही पीछे मुड़ी तो मि. शर्मा ने उसके आँसू देख तुरन्त बात को सम्हालते हुए कहा –अरे,गीता उस दिन सुधा ने मुझसे कहा था कि...मैं तुम्हें रुपए दे दूँ,पर मैं ही भूल गया...l ये लो..और तुम अभी बाज़ार जाओ मीना के लिए फ्रॉक और चप्पल ख़रीद लेना...साथ ही तेल,दीया और मनपसंद मिठाई जो भी लेना हो,ले लेनाl
रुपए मिलते ही गीता ने मुस्कुराते हुए कहा-मैं बस,…थोड़ी ही देर में आती हूँ साहब…फ़िर यहाँ भी तो काम है!ठीक है न…तुम ज़ल्दी जाओ,नहीं तो बाज़ार बंद हो जाएगा!मि. शर्मा ने व्यग्रता से कहाl उसके जाते ही पत्नी सुधा का हाथ थामते हुए बोले-जानती हो सुधा,अभी-अभी मीना की आँखों को देखकर मुझे ऐसा लगा…जैसे लक्ष्मी की पूजा के पहले भी कुछ आशीष अत्यंत ज़रूरी होते हैं…जिसे हम लोग तिरस्कृत कर रहे थे..l` ये सुन कर सुधा के हाथ का दबाव ही अब पति से अपना मौन पश्चाताप व्यक्त कर रहा था…l

परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”

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