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‘विश्वास’ सबसे बड़ी पूंजी

इंदु भूषण बाली ‘परवाज़ मनावरी’
ज्यौड़ियां(जम्मू कश्मीर)

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सनद रहे कि,विश्वास ही विश्वासघात की जननी होता है। दूसरे शब्दों में विश्वास पर धरती टिकी है। धरती पर आस्था है और आस्था जीवन है। जीवन संसारिक रिश्तों से संभव है।
बात रिश्तों की करें तो रिश्ते अनेक प्रकार के होते हैं। जिनमें माता-पिता,बहन-भाई,दादी-दादा,नानी-नाना,बेटी-बेटा,धरा एवं राष्ट्र का रिश्ता प्राकृतिक होता है। इन्हें जन्मजात अर्थात पैदाइशी रिश्ते माना जाता है। इन्हें प्राकृतिक मान्यता होती है,जो छोड़े तो जा सकते हैं,किन्तु तोड़े नहीं जा सकते।
ऐसे ही अप्राकृतिक रिश्ते बनाए जाते हैं, जिन्हें समाज मान्यता देता है। जैसे,गुरू-शिष्य,अड़ोसी-पड़ोसी,पति-पत्नी,दामाद-बहू, सास-ससुर,ज्येष्ठ-ज्येष्ठानी,देवर-भाभी,साली-साला,मित्र,किरायेदार,मकान मालिक, विधायक-मतदाता,सांसद-मतदाता इत्यादि अनेक प्रकार के रिश्ते होते हैं,जिन्हें आवश्यकतानुसार जोड़ा,तोड़ा व छोड़ा जा सकता है।
रिश्ते प्राकृतिक हों या अप्राकृतिक,परंतु जीवन को दीर्घ सार्थक व सुखद बनाने के लिए ‘विश्वास’ अति आवश्यक ही नहीं,बल्कि आधार माना जाता है। विशेषकर पति-पत्नी और मित्रता का रिश्ता मात्र और मात्र विश्वास के कच्चे धागे से बंधा होता है। इस पर रहीम जी कहते हैं कि-
‘रहिमन धागा प्रेम का,मत तोरो चटकाय,
टूटे पे फिर ना जुरे,जुरे गाँठ परी जाए।’
अर्थात प्रेम का रिश्ता अत्यंत कच्चा-सूक्ष्म होता है‌। इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता‌,क्योंकि यदि प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है,तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है। यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है।
इसलिए भारतीय सभ्यता और संस्कृति में पति-पत्नी का रिश्ता एक रिश्ता नहीं, बल्कि संस्कार माना गया है। इसमें वर-वधू को सात जन्मों की कसमें लेनी पड़ती हैं कि सात जन्मों तक वे साथ रहेंगे,क्योंकि विवाह हिन्दू संस्कृति में जीवन की मील का एक पवित्र पत्थर माना गया है,जिसमें अग्नि से पवित्र कुछ नहीं होता और अग्नि के समक्ष शास्त्रों के मंत्रोच्चारण द्वारा ली गई शपथ दोनों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में तलाक शब्द को ही घृणा की दृष्टि से देखा और माना जाता है।
अतः,रिश्तों में विश्वास कितनी बड़ी पूंजी होती है,यह उन निर्दोष बच्चों से बढ़कर कोई नहीं जानता,जिनके माता-पिता अविश्वास या अन्य संसारिक कारणों के कारण अलग हो जाते हैं। इसके आलावा वह शिष्य अथवा गुरू एवं राष्ट्र के मतदाता जानते हैं,जिनके साथ विश्वासघात होता है। अर्थात रिश्तों में ही नहीं,बल्कि संवैधानिक दृष्टि से भी ‘विश्वास’ की पूंजी से बढ़कर संसार में कोई पूंजी नहीं है।

परिचय–इंदु भूषण बाली का साहित्यिक उपनाम `परवाज़ मनावरी`हैl इनकी जन्म तारीख २० सितम्बर १९६२ एवं जन्म स्थान-मनावर(वर्तमान पाकिस्तान में)हैl वर्तमान और स्थाई निवास तहसील ज्यौड़ियां,जिला-जम्मू(जम्मू कश्मीर)हैl राज्य जम्मू-कश्मीर के श्री बाली की शिक्षा-पी.यू.सी. और शिरोमणि हैl कार्यक्षेत्र में विभिन्न चुनौतियों से लड़ना व आलोचना है,हालाँकि एसएसबी विभाग से सेवानिवृत्त हैंl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप पत्रकार,समाजसेवक, लेखक एवं भारत के राष्ट्रपति पद के पूर्व प्रत्याशी रहे हैंl आपकी लेखन विधा-लघुकथा,ग़ज़ल,लेख,व्यंग्य और आलोचना इत्यादि हैl प्रकाशन में आपके खाते में ७ पुस्तकें(व्हेयर इज कांस्टिट्यूशन ? लॉ एन्ड जस्टिस ?(अंग्रेजी),कड़वे सच,मुझे न्याय दो(हिंदी) तथा डोगरी में फिट्’टे मुँह तुंदा आदि)हैंl कई अख़बारों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैंl लेखन के लिए कुछ सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैंl अपने जीवन में विशेष उपलब्धि-अनंत मानने वाले परवाज़ मनावरी की लेखनी का उद्देश्य-भ्रष्टाचार से मुक्ति हैl प्रेरणा पुंज-राष्ट्रभक्ति है तो विशेषज्ञता-संविधानिक संघर्ष एवं राष्ट्रप्रेम में जीवन समर्पित है।

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