कुल पृष्ठ दर्शन : 325

You are currently viewing परीक्षा

परीक्षा

देवश्री गोयल
जगदलपुर-बस्तर(छग)
*******************************************************

पीएससी की परीक्षा देने के लिए जैसे शहर के सारे लड़के-लड़कियां उमड़ पड़े थे…रेलवे स्टेशन में…! स्निग्धा भी अपने बैग के साथ लदी भागती हुई स्टेशन पहुंची…l ये उस समय की बात है,जब फोन नहीं था लोगों की जिंदगी में! सिर्फ मुलाकातों पर बात तय होती थी…तो स्निग्धा भी अपनी सहेलियों के साथ इंदौर जाकर परचा देने के लिए ट्रेन पकड़ने स्टेशन आई थी। ट्रेन छूटने वाली थी,तो सबने उसे जल्दी से किसी भी बोगी में चढ़ने को कहा..l
बोगी में हड़बड़ा कर चढ़ने के बाद उसने पाया कि,एक भी लड़का और लड़की उसकी पहचान के नहीं हैं…,परन्तु सारे लोग उसी के शहर के थे..उसे ऐसा लगा…l स्निग्धा थोड़ा विचलित हुई,क्योंकि सहेलियों के साथ पहली बार वो अकेली परीक्षा देने इंदौर जा रही थी….। परीक्षा देने का तनाव और अकेले होने का डर उसके चेहरे पर साफ नजर आ रहा था…। एक लम्बे से लड़के ने उसको देखा और मुस्कुरा कर पूछा,-आप भी परीक्षा देने जा रही है क्या ?
जीl उसने धीरे से कहा…l
पर मैं दूसरे डिब्बे में चढ़ गई हूँl यहां मुझे कोई अपना नहीं दिख रहा है..!
कोई बात नहीं,अगले स्टेशन पर आप अपनों को ढूंढ लेना..तब तक यहीं पर खड़े रहिए....! यह सुनकर स्निग्धा थोड़ा आश्वस्त हुई।
ट्रेन पूरी रफ्तार से चल रही थीl लड़के दोस्तों के साथ हँसी-मजाक कर रहे थे…l उसे अपनी सहेलियों पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि,किसी ने भी उसका इंतजार नहीं किया और सबके-सब पहले से डिब्बे में बैठ गए…l खैर,स्निग्धा का मन ट्रेन की गति के साथ दौड़ रहा था…ये पर्चा अच्छे से देकर कोई अच्छी पोस्ट लेना है,ताकि घर की माली हालत सुधारी जा सके…! बड़ी दीदी की शादी में बहुत कर्ज चढ़ गया है बाबूजी पर…वो उतारने में उनकी मदद हो सके..और भी न जाने क्या-क्या…? ट्रेन एक दूसरे शहर में प्रवेश कर रही थी,तभी वो लड़का अपनी जगह से हट कर दरवाजे के पास खड़ा हो गया…!स्निग्धा ने उसे देखा,तो उसने आश्वासन भरी आँखों से मानो कहा,-चिंता न करो मैं हूँ न...! और उसने अपनी आँखें नीची कर ली…। वो लड़का अब दोनों हाथों से दरवाजे को पकड़ कर बाहर की ओर झांक रहा थाl स्टेशन पर गाड़ी का प्रवेश हो चुका था,तभी जोर की आवाज हुई और डिब्बे में शोर होने लगाl खूब जोर से सब चीखने-चिल्लाने लगे….l उसने चौंक कर सर उठाया तो देखा कि,दरवाजे पर वो लड़का नहीं था…l
क्या हुआ ? उसने भी चीखते हुए एक लड़की को पूछा…तो वो बोली-
अभी यहाँ दरवाजे पर जो लंबा-सा लड़का खड़ा था न,वो प्लेटफॉर्म की रॉड से टकरा कर नीचे गिर गया....!
यह सुनकर तो स्निग्धा के हाथ-पैर फूल गए…l
क्या !!! वो भी चीखी…! तब तक ट्रेन रुक चुकी थी…सब पीछे की देख रहे थे…जिधर वो लड़का गिरा था,पर उसको देखने कोई नहीं जा रहा था..! सब आपस में बोल रहे थे कि,बहुत बुरा हुआ…पर सहायता करने कोई नहीं निकल रहा था..यह देख उसने जल्दी से अपना पर्स और बैग उठाया,तथा उतरने को हुई…तो पीछे से किसी ने टोका…-`अरे,ट्रेन यहां थोड़ी देर ही रुकती है…जब तक तुम पहुँचोगी उस तक,तो ट्रेन चल पड़ेगी..और इसके बाद कोई ट्रेन भी नही है इंदौर के लिए …रात भी हो गई है। कैसे करोगी,अगर ट्रेन छूटी तो ?’
वो छटपटा उठी…क्या करुँ ? दिल और दिमाग में कशमकश हो रही थी..! पीएससी की हाड़ तोड़ तैयारी….बड़ी मुश्किल से अकेले पर्चा देने जाने की माँ की अनुमति…! घर की हालत सब..! तभी ट्रेन की घण्टी बजी…और वो जोर से भागते हुए नीचे उतर कर सरपट भागी….उस दिशा में,जहां इंसानियत की परीक्षा देनी थी उसे…! मन ही मन सोचते हुए कि किसी घर के दीपक को बुझने से बचा लूं,फिर पापा का कर्ज उतार ही लूंगी…!

परिचय-श्रीमती देवश्री गोयल २३ अक्टूबर १९६७ को कोलकाता (पश्चिम बंगाल)में जन्मी हैं। वर्तमान में जगदलपुर सनसिटी( बस्तर जिला छतीसगढ़)में निवासरत हैं। हिंदी सहित बंगला भाषा भी जानने वाली श्रीमती देवश्री गोयल की शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी, अंग्रेजी,समाजशास्त्र व लोक प्रशासन)है। आप कार्य क्षेत्र में प्रधान अध्यापक होकर सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत अपने कार्यक्षेत्र में ही समाज उत्थान के लिए प्रेरणा देती हैं। लेखन विधा-गद्य,कविता,लेख,हायकू व आलेख है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना है,क्योंकि यह भाषा व्यक्तित्व और भावना को व्यक्त करने का उत्तम माध्यम है। आपकी रचनाएँ दैनिक समाचार पत्र एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैं,जबकि प्रेरणा पुंज-परिवार और मित्र हैं। देवश्री गोयल की विशेषज्ञता-विचार लिखने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा हमारी आत्मा की भाषा है,और देश के लिए मेरी आत्मा हमेशा जागृत रखूंगी।”

Leave a Reply