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द्वंद

कविता जयेश पनोत
ठाणे(महाराष्ट्र)
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मन के सागर में,
हर पल उफनता एक तूफान-सा
विचारों और जज्बातों का द्वंद है।
हर एक लहर में छुपा एक,
भाव हजारों वेगों में लिपट
मन के गलीचे में बंद है।
कभी खुशियों की बयार संग उफन जाता है,
कभी गम के गरल में खामोश
एक लहर बन,
बहता जाता है।
मन के सागर में मोती हजार,
जिनके कई रंग है।
कोई खुशियों की चमक लिए,
तो कोई गम की कालिख में रंग।
मन के भावों को दर्शाता है,
ये द्वंद मन का
मन में जब खलबली मचाता है।
आँखों की नींद,चेहरे की रौनक,
होंठों की खामोशियों संग
मन का आईना बन जाता है।
ये अंतरद्वंद ही तो है,
जो हमें अपने अंतः से
अवगत कराता हैll