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जगो मुसाफिर

विजय कुमार
मणिकपुर(बिहार)

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उठो सवेरे,जगो मुसाफिर
देखो सूरज निकल गया,
चिड़िया अपने घर को छोड़
मस्त पवन में खो गई।

बाग-बगीचे,खेत-खलिहान
हरे-भरे होने लगे,
उठो सवेरे,जगो मुसाफिर
देखो सूरज निकल गया।

प्रातः काल की अदभूत रंग
पर्यावरण पे छाने लगा,
उठो सवेरे,जगो मुसाफिर
देखो सूरज निकल गया।

किसान अपने बैलों को लेकर
खेतों की ओर जाने लगा,
उठो सवेरे,जगाे मुसाफिर
देखो सूरज निकल गया।

आल पे अंधेरा बादल,
धीरे-धीरे मंडराने लगाl
उठो सवेरे,जगो मुसाफिर
देखो सूरज निकल गयाll

परिचय–विजय कुमार का बसेरा बिहार के ग्राम-मणिकपुर जिला-दरभंगा में है।जन्म तारीख २ फरवरी १९८९ एवं जन्म स्थान- मणिकपुर है। स्नातकोत्तर (इतिहास)तक शिक्षित हैं। इनका कार्यक्षेत्र अध्यापन (शिक्षक)है। सामाजिक गतिविधि में समाजसेवा से जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता एवं कहानी है। हिंदी,अंग्रेजी और मैथिली भाषा जानने वाले विजय कुमार की लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक समस्याओं को उजागर करना एवं जागरूकता लाना है। इनके पसंदीदा लेखक-रामधारीसिंह ‘दिनकर’ हैं। प्रेरणा पुंज-खुद की मजबूरी है। रूचि-पठन एवं पाठन में है।

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