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बेटी,क्या श्राप!

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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सर उठा कर चल नहीं सकता
बीच सभा के बोल नहीं सकता,
घर-परिवार हो या गाँव-समाज
हर नजर में घृणा का पात्र हूँ।
क्योंकि, ‘बेटी’ का बाप हूँ…

जिंदगी खुलकर जी नहीं सकता
चैन की नींद कभी सो नहीं सकता,
हर दिन-रात रहती है चिंता
जैसे दुनिया में कोई श्राप हूँ।
क्योंकि, ‘बेटी’ का बाप हूँ…

दुनिया के ताने-कसीदे सहता
फिर भी मौन व्रत धारण करता,
हर पल इज़्ज़त रहती है दाँव पर
इसलिए करता ईश का जाप हूँ।
क्योंकि, ‘बेटी’ का बाप हूँ…

जीवनभर की पूँजी गंवाता
फिर भी खुश नहीं कर पाता,
रह न जाए बेटी की खुशियों में कमी
निश-दिन करता ये आस हूँ।
क्योंकि, ‘बेटी’ का बाप हूँ…

अपनी कन्या का दान करता हूँ
फिर भी हाथ जोड़ खड़ा रहता हूँ
वर पक्ष की इच्छा पूरी करने के लिए,
जीवनभर बना रहता गूंगा आप हूँ।
क्योंकि, ‘बेटी’ का बाप हूँ…

देख जमाने की हालत घबराता
बेटी को संग ले जाते कतराता।
बढ़ता कहर जुर्म का दुनिया में,
दोषी पाता खुद को आप हूँ…
क्योंकि, ‘बेटी’ का बाप हूँ…॥

परिचय– संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

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