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प्रकृति का बिछुड़ना

विजय कुमार
मणिकपुर(बिहार)

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सूरज एक,चन्द्रमा एक
धरती सारी बंट गई,
प्रकृति की सुंदरता
कहाँ जा के छुप गई।

बादलों से हो व्रजपात
समुन्दर से हो चक्रवात,
महामारी बनी महा काल
अपनों से सब बेहाल।

एक तरफ तो पानी है
एक तरफ अनगिनत कहानी,
लाचारी ही लाचारी है
कुदरत ने ही ढहाई है।

सोचा था फरियाद सुनाऊँ
वक़्त न मिला मैं कहाँ जाऊँ,
आज मुझे एहसास हुआ
जब मंदिर,मस्जिद बंद मिलेll

परिचय–विजय कुमार का बसेरा बिहार के ग्राम-मणिकपुर जिला-दरभंगा में है।जन्म तारीख २ फरवरी १९८९ एवं जन्म स्थान- मणिकपुर है। स्नातकोत्तर (इतिहास)तक शिक्षित हैं। इनका कार्यक्षेत्र अध्यापन (शिक्षक)है। सामाजिक गतिविधि में समाजसेवा से जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता एवं कहानी है। हिंदी,अंग्रेजी और मैथिली भाषा जानने वाले विजय कुमार की लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक समस्याओं को उजागर करना एवं जागरूकता लाना है। इनके पसंदीदा लेखक-रामधारीसिंह ‘दिनकर’ हैं। प्रेरणा पुंज-खुद की मजबूरी है। रूचि-पठन एवं पाठन में है।

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