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कठोर कदम

मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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दो महीने ही तो हुए हैं मेधा की शादी को,फ़िर ये गुमसुम क्यों रहती है…? अनजानी आशंका से घिरी मालती की नब्ज़ उसके पति विनोद ने आख़िर पकड़ ही ली,और बोले-इस तरह टेंशन पालने से क्या होगा! मेधा से पूछो क्या हुआ है,संभव हुआ तो हम उसकी मदद करेंगे!
कोई टेंशन है बेटा...?
अचानक माँ के इस अप्रत्याशित प्रश्न से घबरा कर मेधा बोली-क्यों...क्या हुआ मम्मा...?
नहीं बेटा,तू हमेशा गुमसुम रहती है न... तो चल,मैं ही धीरज (दामाद) को बुला लेती हूँl मालती ने जानबूझकर व्यंग्य का पुट देते हुए कहाl
नहीं...मुझे नहीं जाना है!
क्यों...! क्या हुआ...? मालती अब कारण जानने की उम्मीद से मेधा के पास ही बैठ गयीl
मेधा सिर झुकाए मुँह बनाते हुए बोलने लगी,-अरे मम्मा,जब देखो तब उनकी बहन आ जाती हैl मेरे से नहीं होगी जी हुज़ूरी,और धीरज का भी अपना कोई व्यापार नहीं है,पार्टनर है वो अपने चचेरे भाई के साथ!
बस यही बात है,और कुछ नहीं है तो...!
नहीं!
तो बेटा,ये शादी का फ़ैसला भी तो तुम्हारा ही था,धीरज के घर में ये है...वो है...मैं उनके परिवार को अच्छे से जानती हूँ,वहाँ मेरी शादी नहीं करोगे तो.... मैं कहीं और नहीं करुँगी...! आपने भी तो घर देखा था न मम्मा…!हाँ देखा था,पर तुम्हारी नज़र से!और तुम्हारी ख़ुशी के लिए परिवार के खिलाफ़ जाकर हमने शादी भी कर दी तो,अब कैसी समस्या है ? बेटा,शादी... जीवन में जंज़ीर की एक नयी कड़ी की तरह होती है,जिसे संयम और प्रेम से मज़बूती देना पड़ती हैl ये कोई हॉस्टल थोड़े ही है कि,यहाँ सहेलियाँ अच्छी नहीं है,तो उसे बदल दिया जाएl घर में हमेशा सुख और शांति रहे,इसके लिए दुःख की धूप को भी सहना पड़ेगा,और रिश्ता निभाने को जी हुज़ूरी थोड़े ही कहते हैंl तुम सामने वाले को मान दोगी,तो बदले में पाओगी भी,और एक बात कहूँ...मान-सम्मान तो हमारा भी है बेटाl ऐसा न हो कि आस-पड़ोस के लोग हमसे पूछने लगें कि,क्या हुआ मेधा को! कब जा रही है अपने ससुराल...?? क्या है न बेटा,अपने व्यवहार से ससुराल वालों का दिल जीतोगी तो ही ख़ुश रहोगी...यहाँ पर रहने से नहीं! अपना दिल कठोर करके मालती ने मेधा से ये बात कह तो दी,और उनकी आँखें भी छलक गईं,जिसे मेधा से छिपाते हुए वो पलट कर खड़ी हो गईl ये दृश्य पास खड़े पति विनोद ने भी देखाl उन्होंने तो आँखें मिलते ही अपनी मौन सहमति जताते हुए मालती से कह भी दिया कि,निश्चिंत रहो,तुम ग़लत नहीं हो!!

परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”

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