मदन गोपाल शाक्य ‘प्रकाश’
फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)
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चला सूर प्रचंड रूप धर,
वीर भूमि रणी तोक भर।
प्रलय रूप डंका बजवाते,
शाही खान का वंश मिटाते।
रण में पौरस गजब दिखाते,
रणभूमि में रक्त बहाते।
एक भयंकर खुन्नस निभाते,
शाही गौरव तोड़ते जाते।
चला वीर जब गुस्सा कर,
चला वीर प्रचंड रूप धर।
कलिंग युद्ध का देख नजारा,
फिर गया माथा हा हा-कारा।
जब दया जागृत मन में हो गई,
क्रोध कालसा मन की खो गई।
देख दशा मन हिंसा पाती,
जागा विवेक नृप की छाती।
अस्त्र-शस्त्र उसने सब त्यागे,
बुद्ध भिक्षु बन राज त्यागे।
चल दिया वीर धर्म राह पर,
चला वीर प्रचंड रूप धर॥