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रामकथा के प्रथम अन्वेषक फादर कामिल बुल्के

प्रो. अमरनाथ
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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हिन्दी योद्धा…………..


बेल्जियम से भारत आकर यहां की नागरिकता स्वीकार करने वाले,हिन्दी को अपनी माँ,राम को अपना आदर्श और तुलसी के प्रति अटूट श्रद्धा रखने वाले डॉ. फादर कामिल बुल्के रामकथा पर गंभीर शोध करने वाले पहले अनुसंधित्सु हैं। ‘रामकथा–उत्पत्ति और विकास’ आज भी रामकथा पर सर्वश्रेष्ठ शोध कार्य माना जाता हैl अपनी मातृभाषा फ्लेमिश के अतिरिक्त अंग्रेजी,फ्रेंच,जर्मन, लैटिन,ग्रीक,संस्कृत और हिन्दी के विद्वान डॉ. बुल्के के सामने यदि कोई हिन्दीभाषी अंग्रेजी बोलता था तो वे नाराज हो जाते थे और हिन्दी में जवाब देते थेl वे १९५० से १९७७ तक सेंट जेवियर्स कॉलेज (राँची)में हिन्दी एवं संस्कृत के विभागाध्यक्ष रहेl ‘अंगरेजी-हिन्दी कोश’ उनकी दूसरी ऐसी महत्वपूर्ण कृति है, जिसका आज भी कोई विकल्प नहीं हैl साहित्य के अध्येताओं के लिए यह सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला शब्दकोश हैl
यह एक संयोग ही है कि,लॉर्ड मैकाले के भारत आने के ठीक एक सौ वर्ष बाद १९३५ में बुल्के भारत आएl कामिल बुल्के का जन्म बेल्जियम के वेस्ट फ्लैंडर्स में गाँव रम्सकपेल में १९०९ में हुआ थाl लैटिन भाषा पढ़ने के बाद ब्रदर बने बुल्के ने अपना जीवन एक सन्यासी के रूप में बिताने का निश्चय किया और कई महत्वपूर्ण संस्थाओं में अध्ययन करने के बाद भारत आ गएl यहां उन्होंने विज्ञान के अध्यापक के रूप में रांची में अपना प्रवास कियाl उन्होंने १९४० में हिन्दी साहित्य सम्मेलन (प्रयाग)से ‘साहित्य विशारद’ की परीक्षा उत्तीर्ण की थीl १९५१ में उन्होंने भारत की नागरिकता ग्रहण कीl
भारत आने और अध्ययन–अध्यापन की यात्रा पर स्वयं कहते हैं,-“मेरी जन्मभूमि बेल्जियम के उत्तर में फ्लेमिश भाषा बोली जाती है और दक्षिण में फ्रेंच भाषाl फ्रेंच विश्व भाषा है,अत: समस्त बेल्जियम में उसका बोल-बाला थाl फ्रेंच, विश्वविद्यालीय तथा उच्च माध्यमिक विद्यालय में शिक्षण का माध्यम थी और उत्तर बेल्जियम के बहुत से मध्यवर्गीय परिवारों में भी फ्रेंच बोली जाती थीl इस परिस्थिति के विरोध में फ्लेमिश भाषा का आन्दोलन प्रारंभ हुआ,जो मेरे विद्यार्थी जीवन के समय प्रबल होता जा रहा थाl मैं भी उस आन्दोलन से सहानुभूति रखता थाl मातृभाषा प्रेम का संस्कार लेकर मैं राँची पहुंचा और यह देखकर दु:ख हुआ कि भारत में न केवल अंग्रेजों का राज है,बल्कि अंग्रेजी का ही बोल-बाला हैl मेरे देश की भांति उत्तर भारत का मध्यवर्ग भी अपनी मातृभाषा की अपेक्षा एक विदेशी भाषा को अधिक महत्व देता हैl उसके प्रतिक्रिया स्वरूप मैंने हिन्दी पंडित बनने का निश्चय कियाl यह निश्चय एक प्रकार से मेरे शोध कार्य की ओर प्रथम सोपान हैl (हिन्दी चेतना,जुलाई- २००९,पृष्ठ-३१)”
बेहद कुशाग्र बुद्धि वाले कामिल बुल्के ने ५ साल में न केवल हिंदी,बल्कि संस्कृत पर भी पूरा अधिकार कर लियाl जब कामिल बुल्के का जेसुइट धर्मसंघ में प्रशिक्षण समाप्त हुआ,तो संघ के अधिकारियों से उन्होंने पढ़ाई के लिए अनुमति मांगी और उन्हें रुचि के अनुरूप हिन्दी में एम.ए. करने की अनुमति मिल गयीl इसके लिए वे इलाहाबाद गए,और प्रवेश लियाl जब वे द्वितीय वर्ष में थे,तभी विभागाध्यक्ष डॉ. धीरेन्द्र वर्मा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और हिन्दी में शोध करने के लिए प्रेरित कियाl उन्हीं के निर्देश पर डॉ. माताप्रसाद गुप्त के निर्देशन में रामकथा पर शोध के लिए उनका पंजीकरण हुआl
‘रामकथा:उत्पति और विकास’ में संस्कृत, पालि,प्राकृत,अपभ्रंश,हिन्दी,बंगला,तमिल आदि सभी प्राचीन और आधुनिक भारतीय भाषाओं में उपलब्ध रामविषयक विपुल साहित्य का ही नहीं,वरन् तिब्बती,वर्मी, इंडोनेशियाई,थाई आदि भाषाओं में उपलब्ध समस्त राम साहित्य का अत्यंत वैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन किया गया हैl इसके प्रकाशन के साथ ही फादर बुल्के की गणना भारत विद्या और हिन्दी के प्रतिष्ठित विद्वान के रूप में होने लगीl
डॉ. बुल्के का शोध-प्रबंध हिन्दी माध्यम में प्रस्तुत हिन्दी विषय का पहला शोध-प्रबंध भी हैl जिस समय फादर बुल्के इलाहाबाद में शोध कर रहे थे,उस समय विश्वविद्यालय के सभी विषयों के शोध-प्रबंध केवल अंग्रेजी में ही प्रस्तुत करने का विधान थाl फादर बुल्के के लिए अंग्रेजी में शोध-प्रबंध प्रस्तुत करना सरल भी था,किन्तु यह बात उनके हिन्दी स्वाभिमान के विपरीत थीl उन्होंने आग्रह किया कि उन्हें हिन्दी में शोध-प्रबंध प्रस्तुत करने की अनुमति प्रदान की जाएl इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ. अमरनाथ झा ने नियमावली में संशोधन कराया और उन्हें अनुमति दीl इसके बाद तो अन्य उत्तर भारतीय विश्वविद्यालयों में भी आधुनिक भारतीय भाषाओं में शोध-प्रबंध प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाने लगीl डॉ. बुल्के की १९५० में सेंट जेवियर्स कॉलेज राँची के हिन्दी-संस्कृत विभाग के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति हो गई और वे वहां इस पद पर अवकाश ग्रहण करने अर्थात १९७७ तक रहेl
शोध-प्रबंध जमा करने के बाद भी डॉ. बुल्के इसी विषय पर अगले १८ वर्ष तक काम करते रहेl उनके गुरु डॉ. वर्मा ने लिखा है,-“इसे रामकथा संबंधी समस्त सामग्री का विश्वकोश कहा जा सकता हैl वास्तव में यह शोध-प्रबंध अपने ढंग की पहली रचना हैl हिन्दी क्या,किसी भी यूरोपीय या भारतीय भाषा में इस प्रकार का दूसरा अध्ययन उपलब्ध नहीं हैl” हिन्दी परिषद (इलाहाबाद विवि) ने स्वयं इसे प्रकाशित करके इसकी गुणवत्ता पर मुहर लगा दीl
रामकथा और तुलसी की भक्ति के बारे में डॉ. बुल्के ने लिखा है,-“वास्तव में रामकथा आदर्श जीवन का वह दर्पण है,जिसे भारतीय प्रतिभा शताब्दियों तक परिष्कृत करती रहीl इस प्रकार रामकथा भारतीय आदर्शवाद का उज्जवलतम प्रतीक बन गई हैl वाल्मीकि के परवर्ती रामकाव्य के कवियों में तुलसी का स्थान अद्वितीय हैl उन्होंने वाल्मीकि और लोकसंग्रह का पूरा-पूरा निर्वाह किया है और उस रामकथा के सोने में भगवद्भक्ति की सुगंध जगा दी हैl
उन्होंने एक जगह लिखा है,- अव्याहतानुयोगी मुनिजन: अर्थात् साधु से कोई भी प्रश्न पूछा जा सकता हैl संस्कृत की इस उक्ति के अनुसार लोग मुझसे ये नितान्त व्यक्तिगत प्रश्न पूछने में संकोच नहीं करतेl “विद्वान होते हुए भी आपका ईसा में इतना दृढ़ विश्वास कैसे ? विदेशी होते हुए भी हिन्दी तथा भारतीय संस्कृति से इतना प्रेम कैसे ? ईसाई होते हुए भी तुलसी पर इतनी श्रद्धा कैसे ? इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए जब मैं अपने जीवन पर विचार करता हूँ,तो मुझे लगता है कि ईसा,हिन्दी और तुलसीदास-ये वास्तव में मेरी साधना के तीन प्रमुख घटक हैं और कि मेरे लिए इन तीन तत्वों में कोई विरोध नहीं,बल्कि गहरा संबंध हैl”
फादर कामिल बुल्के का दूसरा ऐतिहासिक कार्य ‘अंगरेजी हिन्दी कोश’ हैl ‘अंग्रेजी-हिन्दी कोश’ १९६८ में प्रकाशित हुआl आज भी यह कोश साहित्यिक अभिरुचि के लोगों में सर्वाधिक प्रचलित कोश हैl इसके विषय में विष्णु प्रभाकर ने लिखा है,- “मुझे यह कोश अब तक के सभी ऐसे कोशों में सबसे उपादेय और सही लगाl”(अंगरेजी-हिन्दी कोश से)
फादर बुल्के का विश्वास था कि ज्ञान-विज्ञान के किसी भी विषय की संपूर्ण अभिव्यक्ति हिन्दी में संभव है और अंग्रेजी पर आश्रित बने रहने की धारणा निरर्थक हैl उनका दृढ़ विश्वास था कि हिन्दी निकट भविष्य में ही समस्त भारत की सर्वप्रमुख भाषा बन जाएगीl अपने महाविद्यालय मंच से भाषण देते हुए उन्होंने कहा था,-“संस्कृत राजमाता है,हिन्दी बहूरानी है और अंग्रेजी नौकरानी है, पर नौकरानी के बिना भी काम नहीं चलताl” वे कहा करते थे कि,दुनियाभर में शायद ही कोई ऐसी विकसित साहित्य भाषा हो जो हिन्दी की सरलता की बराबरी कर सकेl डॉ. बुल्के इस बात के गवाह हैं कि जो व्यक्ति अपनी मातृभाषा से प्यार करता है,वही दूसरे की मातृभाषा से भी प्यार कर सकता हैl
उनके द्वारा रचित छोटी-बड़ी पुस्तकों की संख्या २९ हैं,जिसमें प्रमुख हैं,- ‘रामकथा:उत्पत्ति और विकास’,‘हिंदी -अंगरेजी लघुकोश’,‘अंगरेजी-हिंदी कोश’, ‘रामकथा और तुलसीदास’,‘मानस-कौमुदी’ तथा ‘नीलपक्षी’ आदिl
निस्संदेह डॉ. फादर कामिल बुल्के ने भारत और पश्चिमी जगत को भावात्मक रूप से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य कियाl भारत सरकार ने साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उनके योगदान के लिए उन्हें पद्मभूषण से सम्मनित कियाl १७ अगस्त १९८२ को गैंगरीन के कारण उनका निधन हो गयाl सेंट जेवियर्स कॉलेज के प्रांगण स्थित उनके आवास व पुस्तकालय को ‘डॉ. फादर बुल्के शोध संस्थान’ के नाम से विकसित किया गया हैl पुस्तकालय और शोध-केन्द्र के प्रभारी ने मुझे बताया था कि इसका संचालन उनकी पुस्तक ‘अंगरेजी हिन्दी कोश’ से मिलने वाली रॉयल्टी से होता हैl
हरिवंशराय बच्चन ने फादर बुल्के के ऊपर एक कविता लिखी हैl हम हिन्दी भाषा और राम-कथा पर किए गए उनके असाधारण शोध-कार्य का स्मरण करते हुए उन्हें श्रद्धा- सुमन अर्पित करते हैंl

(वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

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