श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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मिले संस्कार पूर्वजों से,सदा बड़ों का आदर करना,
ऊँच-नीच का भेद मिटा के,सबसे मिल के रहना।
गौ माता की सेवा करना यह हिन्दू धर्म सिखाया है,
हाथ पकड़ कर उसने मेरा,सूर्य को अर्घ्य दिलाया है।
संस्कार दिए हैं पूर्वजों ने,माता-पिता की सेवा करना,
अनुजों को प्यार करना,गुरु आज्ञा का पालन करना।
देश धर्म ही भारतीयों का,परम धर्म है कहलाता,
दीन-दुखियों की करो सेवा,परिवार ही सब बतलाता।
पूर्वजों ने सिखलाया,गुमान धन का कभी ना करना,
दो दिन की चान्दनी है दौलत,इसे सदा याद रखना।
पूर्वजों ने हीं है सिखलाया संग में नहीं कुछ जाएगा,
जितना दान दिया है तुमने,वही नैया पार कराएगा।
भाई बन्धु,कुटुम्ब-कबीला,ये सब झूठे नाते हैं,
जब तक धन है पास में,मिलकर सभी खाते हैं।
मेरे पूर्वज कहते हैं,भूखे को दो रोटी खिलाना है,
रख कर मन में सन्तोष,दया का दीप जलाना है।
द्वार पे आए साधु-सन्त,खाली हाथ नहीं लौटाना है,
दया धर्म का भाव रख मन में,उनका मान बढ़ाना है।
पूर्वजों से ज्ञान मिला,सच्चाई के पथ पर चलना है,
आए अनेक बाधा,धर्म पथ से कभी ना हटना है॥
परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।