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खुशी में खुशी देखिए

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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हर कोई खुश रहना चाहता है,पर कुछ अपनी खुशी में ही खुश रहना चाहते हैंl दूसरे की खुशी उन्हें उदास कर देती है,कई बार तो हताश कर देती है,करोड़पति-साधन संपन्न लोग अपनी चैन की नींद ही खो बैठते हैंl एकाएक इसी एहसास में खो जाते हैं कि,मेरे पास तो उसके मुकाबले बहुत ही कम हैl बड़े-बड़े बैंक बैलेंस,बंगले,गाड़ियों के बावजूद कंगाल-सा अनुभव करने लगते हैं। अब ये सब क्या है ? अथाह धन ने खुशी दे दी,पर खुशी के एहसास के अभाव में वे अवसाद, माइग्रेन,मधुमेह,उच्च-निम्न रक्तचाप आदि के शिकार हो जाते हैं। और उसी के आलीशान बंगले के सामने बसी झुग्गियों में से हँसने, खिलखिलाने व नाच-गाने की आवाज़ आ रही होती हैl कभी तो उन्हीं में से एक के घर बच्चे के जन्म पर खुशी मनाई जा रही होती है,और कभी-कभार क्या! अक्सर ही वहां से मस्ती में गीत व ढोल बजाने की आवाज़ तो आती ही रहती है। `जिसको नहीं कोई चाह, वह ही तो है बस शहंशाह।`
अपेक्षा ही इच्छाओं का संसार बसा देती है, अपनी हैसियत से ज्यादा ऐशो-आराम जुटाने में वो अपनी जड़ों से ही अलग हो जाता हैl हँसी-खुशी बसर कर रहा परिवार निराशा, कुंठा,उदासी के आलम में चला जाता हैl फिर मिल रही उपेक्षा उसे हताशा व वैराग्य की ओर धकेल देती है।
जीवन में अधिक खुशी के लिए बहुत थोड़े की जरूरत होती हैl खुशी को ढूंढना अपनी परछाईं और हवा का पीछा करने के ही समान है। हमें अपनी सोच को ही बदलना होगाl मेरी ही कविता का एक अंश है-“दो काली रातों के बीच,है प्रकाश फैलाता एक उजला दिन या दो उजले दिनों के बीच है एक अंधेरी अंधियारी रात। हालात वही,माहौल वही,तुम भी वही,कुछ भी नहीं बदला,बदलना होगा तुम्हें अपना नज़रिया,तब ही बन पाएगी कोई बात।”
देखने में यह बात कई बार आई है कि,घर में सब-कुछ सही व अनुकूल होने पर अतीत की कुछ कटु स्मृतियों को बार-बार कुरेद कर अच्छे-भले खुशी के माहौल को उदासी व निराशा में बदल देते हैंl हालांकि,यह अच्छी तरह जानते हैं कि बीती को बार-बार याद कर वह समय तो नहीं आएगा,पर अपने आज को खराब कर बैठते हैंl भूल जाते हैं कि इसी आज पर ही तो कल निर्भर है। चाहे अनचाहे हम परिवार में बार-बार कोई अप्रिय लगने वाली बात को रिश्ते का कोई लिहाज़ किए बिना बस भावावेश में आ कर कह देते हैं,तो लम्बे समय से व्याप्त खुशियाँ एकाएक काफ़ूर हो जाती हैं और तनाव तथा सौहार्द के बीच की जबर्दस्ती की खामोशी और अजीब-सा वातावरण छा जाता है,व कभी भी आ जाने वाले तूफान के आगोश में शांति कहीं खो सी जाती है। खुशियां सहेज कर रखने में बरसों लग जाते हैं,पर बिखरने में कुछ पलl लाख कोशिश करने पर वो खुशी लौट कर नहीं आती,बस खुशी का आवरण ही नज़र आता है।
कई को गरीब,असहाय और लाचार लोगों की मदद कर के अनिर्वचनीय खुशी मिलती हैl
उनके चेहरों पर आई मुस्कान,इनको खुशी से लबालब कर देती हैl उनकी खुशियों का,आनन्द का कोई ठिकाना नहीँ रहता। ऐसे लोग उनके लिये किसी फरिश्ते से कम नहीं होते। यह खुशी तो सिर्फ प्रभु के प्यारे बन्दों को उनके ही सौभाग्य से मिलती है। इस खुशी को पाने व आनंद की अनुभूति पर ही तो संसार टिका हैl
जब आप अपनी मुश्किलों को हल नहीं कर पाते तो आप तनावग्रस्त हो जाते हैंl गर मुश्किलों को कम नहीं कर सकते तो अधिक से अधिक अच्छे विचार सोचने चाहिए,यही अच्छे विचार एक दिन आपकी जिंदगी बदल देंगे।
तनाव एक मानसिक प्रक्रिया है। यह हमेशा हमारे दिमाग में रहता हैl घटनाएं तनाव का कारण नहीं है,बल्कि आप इन सबको कैसे समझते और प्रभावित होते हैं,यह तनाव का कारण है। कुछ भी हो जाए,बस यही सोचिए, कल यह भी नहीं होगाl कोई फर्क नहीं पड़ता ,रात गई,बात गई।
किसी की एक काम करने में उसकी मनोवृत्ति क्या है,यह महत्वपूर्ण है,क्योंकि यह मनोवृत्ति ही है जो बताती है इस कार्य में खुशी हो रही है या नहीं। हर परिस्थिति में शांत रहना-सुख शांति का गहना।
आज का दिन बिताओ अच्छा-कल अपने-आप होगा,पहले से ओर अच्छा। हर समय यही सोचिए,मैं पहले से अच्छा हूँ और कईयों से अच्छा हूँ तो अच्छा ही अच्छा महसूस करोगे। परेशान मत हो,शान से परे हो जाओ, चैन में आ जाओगे। स्वयं को सर्वदा विपरीत परिस्थिति के लिए रखो तैयार,देखो फिर आज का दिन कितना सुहाना है यार।
खुशी के लिए नकारात्मक विचारों को दिमाग से निकालना इतना महत्वपूर्ण नहीं,बल्कि यह है कि उसे सकारात्मक में बदल दिया जाए। देखिए मेरी एक कविता का अंश इसी बात को किस तरह उजागर करता है-
`खुशियों को खुशी के साथ जिओगे तो,
खुशियां दोहरीं हो जाएंगी।
खुशी कभी भी बाहर से नहीं,
अन्दर से ही तो उपजती है।
खुशियों को जी भर के जिओ,
और बांटो तो भी खूब जी भर के।
फिर यही खुशियां आपकी,
दोहरीं से चार गुणा हो जाएंगीll`

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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