कुल पृष्ठ दर्शन : 202

घृणा

उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश) 
***************************************************

देसी से परदेसी हुआ,
झेला दु:ख और पीड़ा
दर-दर भटका,खाया झटका,
दिन-रात एक-सा करके
मुद्रा लेकर घर पर अटका,
आया काम नज़र में जो भी
करते गया अब पैसा सटका,
सगे संबंधी स्वार्थी निकले
करने लगे साथ में क्रीड़ा।
नीयत जानी अपनों की तो,
मन में हो गई घृणा॥

बार-बार प्रयास भी करता,
गाँव और समाज से डरता
नीतिपरक और सामाजिक बातें,
हरदम मैं तो उनसे करता
गलती करके बार-बार वे,
घोर कष्ट जब भोगन लागे
आदत सुधारो दुख भागेगा,
कहाँ बैठ मैं उनके आगे
हुआ असर ना मेरी बात का,
बोलना मैंने छोड़ दिया
मर्यादा की सीमा को भी,
उन लोगों ने तोड़ दिया
गिर गए नज़रों से मेरी वे,
लगने लगे नाली का कीड़ा।
नीयत जानी अपनों की तो,
मन में हो गई घृणा॥

कहें उमेश कि सबकी सुनो,
करो तो अपने दिल की
सुख में सारी दुनिया अपनी,
परख करो मुश्किल की
दुख में जो भी साथ निभाए,
राज बता दो दिल की
लेने को तो सब मुँह बाए हैं,
दान नहीं एक तिल की
स्वार्थी जल्दी से मुँह फुलाते,
अवसरवादी वे बन जाते
लाभ मिले तो दौड़े आते,
ना मिले तो दांव लगाते
सावधानी से काम है करना,
लगे रहना है भीड़ा।
नीयत जानी अपनों की तो,
मन में हो गई घृणा॥

परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं।अलकनंदा साहित्य सम्मान,गुलमोहर साहित्य सम्मान आदि प्राप्त करने वाले श्री यादव की पुस्तक ‘नकली मुस्कान'(कविता एवं कहानी संग्रह) प्रकाशित हो चुकी है। इनकी प्रसिद्ध कृतियों में -नकली मुस्कान,बरगद बाबा,नया बरगद बूढ़े साधु बाबा,हम तो शिक्षक हैं जी और गर्मी आई है आदि प्रमुख (पद्य एवं गद्य)हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।

Leave a Reply