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शांति का परचम फहराना है

आशा जाकड़ ‘ मंजरी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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हमें धरा पर शांति का परचम फहराना है,
स्वार्थ को दूर भगा इसे स्वर्ग बनाना है।

खून के रिश्ते सिसक रहे,
रिश्तों में आ रही दरार।
पावनता सब नष्ट हो गई,
जीवन में हो रही तकरार।
ईर्ष्या-द्वेष छोड़कर प्रेम की जोत जलाना है,
हमें धरा पर शांति का परचम फहराना है…ll

नदियों का पावन देश हमारा,
मंत्रोच्चार का यह देश हमारा।
आधुनिकता की अंधी दौड़ में,
कुसंस्कारी हो रहा देश हमारा।
कुसंस्कार मिटा संस्कार के फूल खिलाना है,
हमें धरा पर शांति का परचम फहराना है…॥

व्यर्थ की भागम भाग-दौड़ में,
जीवन हो रहा तनाव पूर्ण।
धरा पर शांति सुख-सुविधाओं की चाहत में,
नहीं किसी के मन को सुकून।
भेदभाव को छोड़ एकता का पाठ पढ़ाना है,
हमें धरा पर शांति का परचम फहराना है…॥

स्वार्थ के हो रहे अंधे भक्त,
धर्म-कर्म सब भूल रहे।
ऊँचा बनने की चाहत में,
अपने अपनों को लूट रहे।
नफरत की दीवार तोड़ प्रेम-बंसी बजाना है,
हमें धरा पर शांति का परचम फहराना है…॥

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