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नयी भोर नव आश मन

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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नई भोर नव आश मन,नव अरुणिम आकाश।
मिटे मनुज मन द्वेष तम,मधुरिम प्रीति प्रकाश॥

मार काट व्यभिचार चहुँ,जाति धर्म का खेल।
फँसी सियासी दाँव में,हुई मीडिया फ़ेल॥

अनुशासन की नित कमी,लोभ घृणा उत्थान।
प्रतीकार में जल रहा,शैतानी हैवान॥

मिटी आज सम्वेदना,दया धर्म आचार।
कहाँ त्याग परमार्थ जग,पाएँ करुणाधार॥

सत्ता के मद मोह में,अनाचार सरकार।
मार रही है साधु को,पाती जन धिक्कार॥

बँटी हुई है मीडिया,लोकतंत्र आवाज़।
बेच आज निज अस्मिता,फँस लालच बिन लाज॥

कौन दिखाए सत्य को,जगाए जनता कौन।
जाति धर्म फँस मीडिया,चतुर्थ आँख जब मौन॥

अद्भुत भारत अवदशा,अद्भुत जनता देश।
तुली तोड़ने देश को,कोप लोभ खल वेश॥

नश्वर तन है जानता,नश्वर भौतिक साज।
फिर भी पापी जग मनुज,चाहत धन सरताज॥

स्वार्थ पूर्ति में देश को,तोड़ रहा इन्सान।
रिश्ते-नाते सब भूले,देश धर्म सम्मान॥

आहत है माँ भारती,लज्ज़ित है निज जात।
पा कुपूत चिर हरण निज,अश्रु नैन पछतात॥

लज्जित हैं पूर्वज वतन,देख वतन गद्दार।
पछताती कुर्बानियाँ,भारतार्थ उद्धार॥

कामुक लोभी कपट जन,देश द्रोह नासूर।
विध्वंसक ये देश के,दुष्कर्मी नित क्रूर॥

आवश्यक जन जागरण,दर्शन नव पुरुषार्थ।
नैतिक शिक्षा हो पुनः,भरें भाव परमार्थ॥

त्याग शील मानव हृदय,दें बचपन उपदेश।
धर्म कर्म सद्ज्ञान दें,भारतीय परिवेश॥

उपकारी अन्तःकरण,राष्ट्र भक्ति मन प्रीति।
राष्ट्र प्रगति हो निज प्रगति,हो शिक्षा नवनीति॥

समरसता सद्भाव मन,बचपन में दें पाठ।
मानवीय अनमोल गुण,संस्कार दें गाँठ॥

बचपन जब नैतिक सबल,तरुण बने मजबूत।
तब भारत सुख शान्ति हो,युवा देश हों दूत॥

इन्द्रधनुष सतरंग बन,खिले प्रगति अरुणाभ।
खुशियाँ महकेँ कुसुम बन,सुखद शान्ति नीलाभ॥

कवि ‘निकुंज’ दोहावली,माँग ईश वरदान।
मति विवेक परहित सदय,बने मनुज इन्सान॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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