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आशा की बगिया

डॉ.शैल चन्द्रा
धमतरी(छत्तीसगढ़)
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घर-घर देखो ये कैसी है बीमारी,
हर तरफ मची है देखो महामारी।

साँसों में हो रही रुकावट भारी,
आक्सीजन की हो रही मारामारी।

दवाओं की हो रही है कालाबाजारी,
बुखार-खांसी हर घर में है जारी।

कैसा ये विषाणु है आया,
पूरा विश्व हलकान हो आया।

दोहन किया धरा का हमने,
जल जमीन जंगल का शोषण किया हमने।

हवा पानी सभी हुए हैं विषाक्त,
अब विषाणु चूस रहा मानव का रक्त।

अब इस संकट से हमें बचना है,
धरा को फिर से हरा-भरा करना है।

पानी खरीद हम पी ही रहे हैं,
हवा भी खरीद कर अब जी रहे हैं।

जो भी हो डट कर इस संकट का करना है हमें सामना,
हे प्रभु! इस संकट से हमें तुम उबारना।

श्वांसों का तार टूटे न करो कुछ ऐसा जतन,
हर मुख खिले,मन हो जाए प्रसन्न।

जन-जन के मन से निराशा का अंधियारा छंट जाए,
हे प्रभु! यह ‘कोरोना’ काल जल्द कट जाए।

फिर से बचपन खिलखिला उठे,
आशा की बगिया लहलहा उठे॥

परिचय-डॉ.शैल चन्द्रा का जन्म १९६६ में ९ अक्टूम्बर को हुआ है। आपका निवास रावण भाठा नगरी(जिला-धमतरी, छतीसगढ़)में है। शिक्षा-एम.ए.,बी.एड., एम.फिल. एवं पी-एच.डी.(हिंदी) है।बड़ी उपलब्धि अब तक ५ किताबें प्रकाशित होना है। विभिन्न कहानी-काव्य संग्रह सहित राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में डॉ.चंद्रा की लघुकथा,कहानी व कविता का निरंतर प्रकाशन हुआ है। सम्मान एवं पुरस्कार में आपको लघु कथा संग्रह ‘विडम्बना’ तथा ‘घर और घोंसला’ के लिए कादम्बरी सम्मान मिला है तो राष्ट्रीय स्तर की लघुकथा प्रतियोगिता में सर्व प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त किया है।सम्प्रति से आप प्राचार्य (शासकीय शाला,जिला धमतरी) पद पर कार्यरत हैं।

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