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कैसे भूल जाऊं उनको…

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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हूँ जो कुछ भी आज मैं,
श्रेय में देता हूँ उन शिक्षकों को
जिन्होंने हमें पढ़ाया-लिखाया,
और यहां तक पहुंचाया।
मैं उनके योगदानों को,
इसलिए सदा में उनकी,
चरण वंदना करता हूँ॥
माता-पिता ने पैदा किया,
पर दिया गुरु ने ज्ञान।
श्रेय में देता हूँ इन सबका,
अपने उनको शिक्षकों को।
जिनकी मेहनत और ज्ञान से,
बन गया पढ़ा-लिखा इंसान।
रहे अँधेरा भले उनके जीवन में,
पर रोशनी शिष्यों को दिखाते हैं।
जिससे कोई बन जाता कलेक्टर,
तो कोई वैज्ञानिक कहलाता है।
सुनकर उन शिक्षकों को,
तब गर्व बहुत ही होता है।
मैं कैसे भूल जाऊं उनको,
योग्य जिन्होंने हमें बनाया है।
देकर ज्ञान की शिक्षा,
हमें यहाँ तक पहुंचाया है॥

परिचय–संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

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