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उदास हूँ विरह से

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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महिला दिवस स्पर्धा विशेष……

पूनम की पूर्णशशि चन्द्रमुखी,
कहाँ थी तुम छिपकर
काली रजाई ओढ़कर,
रहस्यमयी बनकर।

पहली तिथि में दिखाया तुम्हारा चेहरा,
आसमां में बनकर एक टुकड़ा!
रोज शाम ढूँढता हूँ तुमको कितना,
एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त आसमान का।

थककर क्लांत-उदास हुआ है मन,
जब न हो पाया तुम्हारा दर्शन
न जाने कौन-सी मोह माया से-
रखी हो संसार को बाँध के।

तुम्हारे सुंदर शशिमुँह देखने के लिए,
तुम्हारा प्रेमी माते रहता है प्रतीक्षा में
अनुभव करता है अंतरमन से-
कृष्ण प्रेम में राधा के विरह वृन्दावन में।

हे चन्द्रमुखी,अब मत जाओ दूर,
उदासीनता छा जाती हैं चारों ओर।
ढूँढता हूँ तुमको,प्रेमिक उदासी,
प्रतीक्षा है तुम्हारी..’तुम हो केन्द्र-हम धुरी॥’

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।