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मजदूर की रोटी

उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश) 
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अपनी व्यथा कहूँ मैं किससे,उमर हो गई छोटी,
सारी दुनिया बंद पड़ी है,कैसे चलेगी रोज़ी-रोटी।

रीढ़ की हड्डी हम हैं लेकिन,लगता है यह टूटेगी,
रोज़ी-रोटी के अभाव में,काया यहीं पे छूटेगी।

फैली महामारी धरा पर,रैना बड़ी भोर है छोटी,
मैं मजदूर सड़क पर बैठा,खोजता रहता रोज़ी-रोटी।

समय का मारा मैं बेचारा,दया करे ना कोई,
काम मिले ना रोटी-पानी,अब गुजारा कैसे होगा।

‘तालाबंदी’ में रोटी बंद है,हालत मेरी दर्दनाक है,
घर में रहें आप सुरक्षित,बाहर जाना खतरनाक है।

कहे ‘उमेश’ हे मात भवानी,दे दो सबको रोटी-पानी,
मजदूरों पर टिकी धरा है,कृषकों की है यही कहानी।
मैं मजदूर काम है मेरा,सेवा करूँ मैं मालिक तेरी,
दे दो काम या रोटी भाई,तुमसे एक दुहाई मेरी।

जीवन बीता करत सेवकाई,विपदा में तुम बनो सहाई,
‘कोरोना’ के कहर से मालिक,रक्षा मेरी करो गोसाईं।

मैं मजदूर मजबूर रोटी को,भूख मिटा दो आकर कोई,
कहे ‘उमेश’ रोटी जो देगा,दीनबंधु पुण्यात्मा है सोई॥

परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं। लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।