अख्तर अली शाह `अनन्त`
नीमच (मध्यप्रदेश)
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राजनीति से ऊपर उठकर,
जड़ से इसे मिटा दें हम।
‘कोरोना’ के पैर तोड़ कर,
के घुटनों पर ला दें हम।
गली-गली में शहर-शहर में,
कोरोना की दस्तक है।
जो गंभीर नहीं है अब भी,
उसे कहें क्या अहमक है।
यह भी सच है जान कई ले,
फूला नहीं समाता ये।
और नए लोगों में जाकर,
अपना रौब जमाता ये॥
लेकिन जबसे हम जागे हैं,
निष्फल करते वार नए।
कम ही ढूँढ यहाँ पाया ये,
अपने लिए शिकार नए॥
जितने रोगी हैं निरोग कर,
के घर को पहुँचा दें हम।
कोरोना के पैर तोड़ कर,
के घुटनों पर ला दें हम॥
‘लाॅकडाउन’ किया अभी तक,
दो-दो हाथ करेंगे अब।
समझ गए इसकी मक्कारी,
ज्यादा नहीं डरेंगे अब॥
सावधानियां रखेंगे पुख्ता,
पकड़े अब ना जाएंगे।
कोरोना को अपने बूते,
पर नीचा दिखलाएंगे॥
सतत परीक्षण सघन परीक्षण,
अब जीवन शैली होगी।
जीवन चुनर बीमारी के,
मैल से न मैली होगी।
हर कोने तक यही सभ्यता,
घर-घर तक फैला दें हम।
कोरोना के पैर तोड़कर,
के घुटनों पर ला दें हम॥
कोरोना तो चाहेगा ही,
घर के अंदर आने को।
लेकिन हम भी कम थोड़ी हैं,
कस ली कमर भगाने को॥
रोग प्रतिरोधक क्षमता हम,
निस दिन यहां बढ़ाते हैं।
मॉस्क पहनते अपने मुँह पर,
इधर-उधर जब जाते हैं॥
सोशल डिस्टेंसिंग से हमने,
इसको यहाँ हराया है।
इसीलिए विकराल रूप ये,
दिखा न अपना पाया है॥
घूम रहे हैं यूँ ‘अनन्त’ बन,
शहजादी शहजादे हम।
कोरोना के पैर तोड़कर,
के घुटनों पर ला दें हम॥