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कोरोना:मेरा अनुभव

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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जब से ‘कोरोना’ आया है उसने हमें सिखाया है,
मिल -जुलकर कैसे रहते हैं अच्छा पाठ पढ़ाया है।

भूल चुके थे संस्कृति अपनी उसने याद दिलाया है,
भारतीय संस्कारों को वापस वो लेआया है।

शुद्ध हो गया वातावरण शुद्ध हुई नदियां सारी,
जंगल कटने बंद हो गए कोरोना की माया है।

साथ ही इसके कोरोना ने दु:ख भी हमें दिखाया है,
बिछुड़ गए अपनों से अपने मन में दर्द समाया है।

लाखों जानें लीं हैं इसने यही बुरा एक काम किया,
दिन-दिन बढ़ता ही जाता है अब तक ना विश्राम लिया।

अनुभव अच्छा और बुरा दोनों ही हमें दिलाया है,
निर्बल और गरीबों को इसने बहुत सताया है।

अच्छी बात हुई है लोगों में मानवता जागी है,
कुछ भामाशाहों के मन से आज कृपणता भागी है।

खुले हाथ से दान दे रहे भूखों को खाना देते,
जो मरते दिन-रात भूख से उनसे आशीषें लेते।

खट्टा-मीठा हुआ है अनुभव इस कोरोना काल में,
लाखों फंसे हुए हैं अब भी कोरोना के जाल में॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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