डॉ. रामबली मिश्र ‘हरिहरपुरी’
वाराणसी(उत्तरप्रदेश)
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प्रेम मिलन का सुंदर अवसर।
मंद बुद्धि खो देती अक्सरll
प्रेम पताका जो ले चलता।
पाता वही प्रेम का अवसरll
उत्तम बुद्धि प्रेम के लायक।
बुद्धिहीन को नहीं मयस्सरll
भाव प्रधान मनुज अति प्रेमी।
भावरहित मानव अप्रियतरll
रहता प्रेम विवेकपुरम में।
सद्विवेक नर अतिशय प्रियवरll
प्रेमातुर नर अति बड़ भागी।
पाता दिव्य प्रेम का तरुवरll
प्रेम दीवाना सदा सुहाना।
प्रेमपूर्ण भाव अति सुंदरll
जिसका दिल अति वृहद विशाला।
वही सरस मन प्रेम समंदरll
जिसका मन विशुद्ध हितकारी।
उसको मिलता प्रेम उच्चतरll
प्रेम मिलन अतिशय सुखदायी।
समझो दिव्य प्रेम जिमि ईश्वरll