कुल पृष्ठ दर्शन : 290

You are currently viewing चुभन

चुभन

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

*************************************************

विपरीत समय होता जीवन,
अवसाद विविध होते हैं मन
लघु बातें भी दे रही चुभन,
सब अपने भी खो जाते हैं।

नैराश्य मनसि हो उद्दीपन,
प्रतिकूल असर होता चिन्तन
संदेह सदा घर कर चितवन,
आवेश अनल जल जाते हैं।

छल छद्म कपट मिथ्या वादन,
लखि धोखा ठग लम्पट जीवन
सच राह कठिन हो परिचालन,
धीरज-साहस खो जाते हैं।

संघर्ष सरित बहता अविचल,
बाधाएँ नित करतीं निर्बल
तम घना निराशा दुर्गम पथ,
खो होश,जोश भरमाते हैं।

अभिलाष नया यायावर मन,
नित प्रगति समुन्नत होते हम
नवनीत मधुर सद्मीत स्वजन,
विपरीत काल खो जाते हैं।

उपहास पात्र चुभता जीवन,
पुरुषार्थ स्वयं झुकता गर्दन
असहाय स्वयं पथ कर दर्शन,
आतप्त हृदय चुभ जाते हैं।

परमार्थ सकल जिया जीवन,
आगत आपद कहँ अपनापन
कर दफ़न लक्ष्य उन्मुक्त गगन,
उपदेश टीस दे जाते हैं।

बेदर्द जख़्म देते हैं गम,
चूभन बन टीस लगा जो मन
असह्य पीड़ा समतुल्य मरण,
वे जीवन पा पछताते हैं।

राहत आपद नित चाह हृदय,
रिश्ते यार हों कोई सदय
मुश्किल में होती मीत परख,
अफ़सोस सभी ख़ो जाते हैं।

कहँ न्याय धर्म कहँ त्यागी जग,
कहँ नीति प्रीति मानवता रग
पहचान मात्र सब स्वार्थ सिद्ध,
अपने सपने बन जाते हैं।

कलि मात्र छलावा अपनापन,
बस धूम मची जग धन पद जन
परिहास विपद दे सदा चुभन,
यादें अतीत रह जाते हैं।

हमराह कहाँ पाएँ कलियुग,
तज प्रेम मृदुल खो लालच रग
नित नहीं समान रहे जीवन,
दुर्दिन तिमिर छँट जाते हैं।

नव राह समझ हर एक चुभन,
होगा जीवन उत्थान सुगमl
हो धीर वीर साहस संबल,
जय-विजय कीर्ति जग गाते हैंll

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

Leave a Reply