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झूठ के मुँह लगता ताला

एस.के.कपूर ‘श्री हंस’
बरेली(उत्तरप्रदेश)
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झूठ कुछ समय का बस एक छलावा है,
फिर हो जाता झूठ का मुँह काला है।
सच की हार होगी यह है एक भुलावा बस-
विधि विधान कि झूठ के मुँह लगता ताला है॥

श्मशान का हिसाब बड़ा ही नेक है,
यहाँ अमीर-गरीब का बिस्तर एक है।
जुबान खराब होना अहम की पहली निशानी-
इसका उपाय प्रभु समक्ष माथा टेक है॥

लकीरों के आगे हाथ में उंगलियां रखी होती हैं,
क्योंकि किस्मत से पहले मेहनत लिखी होती है।
कुछ बैठ जाते हैं जिंदगी की थकान में थक हार कर-
वही बनता विजेता,पूजा कर्म की जिसने करी होती है॥

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