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राष्ट्रवाद ही भारतीयता

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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हर देशवासी कहता है कि उसे अपनी मातृभूमि से,अपनी मिटटी से प्रेम है,किन्तु क्या हम वाकई अपनी मातृभूमि से प्रेम करते हैं या सिर्फ छद्म देशभक्ति का लबादा ओढ़े रहते हैं। वैश्वीकरणके इस दौर में देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता के मायने बहुत संकुचित हो गए हैं। १९४७ में कहने को तो हम अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद हो गए,किन्तु विचारणीय यह है कि जिन कारणों से हमारे ऊपर विदेशियों ने एक हज़ार सालों तक राज्य किया,क्या वो कारण समाप्त हो गए ? उत्तर है नहीं,एवं इसका कारण है हमारे अंदर राष्ट्रीयता का अभाव।
राष्ट्र कोई नस्लीय या जनजातिय समूह नहीं होता,वरन ऐतिहासिक तौर पर गठित लोगों का समूह होता है,जिसमें धार्मिक,जातिय एवं भाषाई विभिन्नताएं स्वाभाविक हैं। किसी भी राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए राष्ट्रीयता की भावना बहुत आवश्यक है। राष्ट्रवाद या राष्ट्रीयता एक ऐसी वैचारिक शक्ति है,जो राष्ट्र के लोगों को चेतना से भर देती हैl उनको संगठित कर राष्ट्र के विकास हेतु प्रेरित करती है,तथा उनके अस्तित्व को प्रामाणिकता प्रदान करती है।
भारत हमारी माता है,इसके नाम पर हमें प्रत्येक बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए,किन्तु हम उसका ही शोषण कर रहे हैं। सामाजिक,आर्थिक, राजनीतिक तरीकों से राष्ट्रवाद को अपमानित कर रहे हैं। भगतसिंह,शिवाजी,सुभाषचन्द्र बोस जैसे वीरों की बलिदानी परम्पराएँ अब हमें प्रेरणा प्रदान नहीं करती हैं। राष्ट्रीय त्यौहार अब बोझ लगने लगे हैं और औपचारिक हो कर रह गए हैं। अधिकांश युवा विकृत संस्कारों एवं आचरण में लिप्त होकर हमारी परम्पराओं का उपहास उड़ाते कहीं भी सड़क पर दिख जाएंगे। संविधान का भारत कहीं लुप्त हो रहा है,और इंडिया भारतीय जनमानस की पहचान बनता जा रहा है। आज की पीढ़ी के लिए भारत के तीर्थ स्थल,स्मारक,वनवासी-आदिवासी,सामाजिक एवं धार्मिक परम्पराएँ सब गौण हो गईं हैं। उनके लिए इंग्लैंड,अमेरिका में पढ़ना एवं वहाँ की संस्कृति को अपनाना प्रमुख उद्देश्य बन गया है।
भारतीय राष्ट्रीयता के वाहक राजा राममोहन राय,स्वामी दयानंद,स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति को गौरव गरिमा प्रदान की है। स्वामी विवेकानंद तो भारत की पूजा करते थे। उनके अनुसार भारतीयता के बिना भारतीय नागरिक का अस्तित्व शून्य है,भले ही वह कितने भी व्यक्तिगत गुणों से सम्पन्न क्यों न हो। आज की युवा पीढ़ी इनके पदचिन्हों पर न चल कर सिनेमाई नायकों एवं नायिकाओं को अपना आदर्श बना रही हैं।
व्यक्तिगत स्वार्थ प्रबल हो गए हैं ,राजनीति स्वार्थपरक एवं नैतिकता विहीन होकर निरंकुश हो चुकी है। संस्कारित शिक्षा का अभाव है। परिवार विखंडित होकर अपने अस्तित्व से लड़ रहे हैं। विद्यालय-महाविद्यालय किताबों एवं मशीनों को सिखाने वाले केन्द्र बन कर रह गए हैं। भारतीय समाज एवं राजनीति में सांस्कृतिक बिखराव स्पष्ट नजर आने लगा है। दुष्प्रचार एवं दुराग्रह सबसे प्रसिद्ध औजार बन कर उभरे हैं। हर कोई अपना-अपना समूह बना कर अपने विचार दूसरों पर थोपना चाहता है। मीडिया भी खेमों में बँट कर अपने मूल आचरण निष्पक्षता को छोड़ कर व्यवसायिक हो चुका है। बुद्धिजीवी एवं लेखक वर्ग संवेदनाओं को छोड़ कर राजनीति की भाटगिरी में व्यस्त हो गया है। अपने स्वार्थों की सिद्धि न होता देख कर,बौखला कर सम्मान वापिस करने पर उतारू है।
भारत में निवास करने वाले सभी समाज एवं वर्गों की मानसिक एकता से ही राष्ट्रवाद विकसित होता है। सामूहिक अस्मिता के अभाव में राष्ट्रीयता की कल्पना व्यर्थ है। भारतीय सांस्कृतिक एकता का अर्थ,सभी धर्मों एवं वर्गों के समन्वय से उपजी राष्ट्रीयता है। जब तक भारतीय संस्कृति को धर्मों की उपासना पद्धति से जोड़े रखेंगे,तब तक सम्पूर्ण राष्ट्रीयता की भावना को अनुभूत करना नामुमकिन है।

दूसरी भाषाओं का ज्ञान एवं उनको सीखना जरूरी है,लेकिन हमारी अस्मिता हमारी मातृभाषा-राष्ट्रभाषा होती है। अगर हम अपनी मातृभाषा-राष्ट्रभाषा को छोड़ कर अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषा को प्रमुखता देंगे,तो निश्चित ही हम राष्ट्रीयता की मूल भावना से भटक रहे हैं। हमें समझना होगा कि,राष्ट्रवाद की भावना वसुधैव कुटुंबकम की भावना से आरम्भ हो कर आत्म बलिदान पर समाप्त होती है।

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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