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महत्वाकांक्षा-सम्मान न मिलना मानसिक रोग तो नहीं!

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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वर्तमान राजनीति

महत्वाकांक्षा और सम्मान न मिलना यानी अपमान इस समय राजनीति में बहुत अधिक प्रचलन में है। ऐसा कौन व्यक्ति होगा,जिसकी सभी महत्वाकांक्षा पूरी हुई होगी और ऐसा कौन व्यक्ति न होगा जिसकी कभी बेइज्जती न हुई हो। व्यक्ति जन्म लेता है,यदि वह घर में बड़ा हुआ और उसके छोटे भाई-बहिनों ने बात नहीं मानी तो उसकी बेइज्जती हुई। कक्षा,पार्टी में या बैठक में पीछे तो,बेइज्जती अथवा पत्नी ने एक गिलास पानी नहीं दिया तो बेइज्जती हुई। यह अपमान क्या वास्तव में एक मनोरोग है, या अहम है ?
संसार में जितनी भी भौतिक सम्पदा हैं,वह हर व्यक्ति चाहता है,और सामग्री सीमित है,इसलिए किसी को कभी भी पूर्णता नहीं प्राप्त हुई। सपना देखना जरुरी है और उससे हमारी महत्वाकांक्षा बढ़ती है। हर व्यक्ति आगे बढ़ने और विकास की पात्रता रखता है,पर क्या वह बड़ा-सम्पन्न होने पर अपने दादा-दादी,नाना-नानी,माता-पिता,बड़े भाई-बहिनों और सहयोगियों के उपकार को भूल जाता है या भूल जाना चाहिए। क्या जिसके सहारे बड़े हुए,उससे नाता तोड़ना चाहिए ? वैसे उक्त बातें सामाजिक,-पारिवारिक सन्दर्भ में किंचित लागू होती हैं, पर राजनीति में ये सब बातें सामान्य मानी जाती हैं।
वैसे,थूक कर चाटने को राजनीति में श्रृंगार कहते हैं। ऐसे व्यक्ति जिनको पहले कोई पहचानता नहीं था,उनको पहचान दिलाई,सब सत्ता सुख दिए,बीज से पौधा बनाया उसके बाद स्वयं वृक्ष बने और फिर बरगद के झाड़ होकर किसी को न पनपने देना,न बढ़ने देना प्रचलित है। मनुष्य को अपने उपकारी के प्रति हमेशा विनीत भाव रखना चाहिए। हमें अपने माँ-बाप,गुरु,सहारा देने वालों, सहयोगियों के प्रति सम्मान के साथ ऋणी होना चाहिए। जो इसका पालन नहीं करते, उनकी निष्ठाएं हमेशा संदिग्ध रहती हैं।
इधर,राजनीति में बन्दर कूदनी हमेशा से होती रही है और होगी। इसको कोई नहीं रोक सकता,कारण कि जहाँ मनुष्य को यह अहसास होने लगता है कि,हमारा विकास नहीं हो पाएगा या सम्मान नहीं मिल पाएगा, तब वह उज्जवल भविष्य की और दृष्टिपात करना शुरू करता है। फिर अपनी जड़ को उखाड़ कर नए बीज के रूप में अन्य खेत या भूमि में बोया जाता है। जो बरगद रहता है,वह अन्य भूमि में बीज बनना स्वीकार करता है। उसके बाद वह वृक्ष बने या न बन पाए,यह कोई जरुरी नहीं।
वर्तमान में जिस राजनीतिक परिदृश्य में बात कहना चाह रहा हूँ,चाहे मध्यप्रदेश,राजस्थान या अन्य कहीं भी पूर्व में हुआ था,हो रहा है और भविष्य जो होगा,वह निश्चित है,पर मानव सुख प्राप्त करने के लिए कोई भी अधम कार्य करने से नहीं चूकता है। और फिर कहता है कि,मेरी पदोन्नति नहीं हो रही हैं या सम्मान नहीं मिल रहा है। जो काम बातचीत से हो सकता था,वहां अहम टकराया और वृक्ष से बीज बन गए। क्या यह अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है,या स्वार्थ लिप्सा के लिए! तर्क अनेक हो सकते हैं,पर वास्तविकता को कोई झुठला नहीं सकता।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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