विजयलक्ष्मी विभा
इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)
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घर-परिवार स्पर्धा विशेष……

संसार की रचना में मनुष्य को परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ रचना माना गया है। मनुष्य ने अपनी श्रेष्ठता को साबित भी किया है,परन्तु मनुष्य अकेला नहीं,एक परिवार के रूप में माता-पिता के साथ आता है और माता की कोख उसका प्रथम घर होती है। इस प्रकार प्रकृति स्वयं घर-परिवार की रचना करती आई है ।
संसार में आकर मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अपने रहने के लिए एक निश्चित स्थान पर एक मकान बनाता है जिसमें रहने वाले माता-पिता और बच्चे उसे अपना घर कहते हैं। ईंट-गारे का मकान कभी घर नहीं कहा जा सकता जब तक कि उसमें एक परिवार न रहता हो।
दुनिया की हर व्यवस्था प्रकृति प्रदत्त है,लेकिन मनुष्य को भ्रम है कि सारे नियम-कानून और व्यवस्थाएँ संसार को उसकी अपनी देन है। यह अभिमान ही उसको तमाम बुराइयों की ओर अग्रसर करता है। भारतीय वांगमय में जगत नियंता और उसके अधीनस्थ देवी-देवताओं की बड़ी वृहद और प्रतिष्ठापूर्ण व्याख्या की गई है। वह कपोल कल्पित नहीं,बल्कि एक दैवी विधान है। हमारे घर परिवार या यों कहें कि हमारा जीवन इसी दैवीय विधान के अनुसार चलता है ।
संसार को चलाने वाली एक परम शक्ति है,जिसके तीन अंग हैं। एक जन्म देता है,दूसरा पालन-पोषण करता है और तीसरा जब अव्यवस्था फैलती है,तो विनाश करता है। सम्पूर्ण प्राणी जगत इन्हीं तीन शक्तियों के द्वारा संचालित है। हमारे घर-परिवार इसी व्यवस्था का सबसे छोटा रूप है।
हमें परम पिता ने सम्पूर्ण विधान के साथ पृथ्वी पर भेजा है और परम पिता के अधीनस्थ सभी कार्यकर्ता उसके विधान के अनुरूप कार्य करते हैं। सूर्य-चन्द्रमा का प्रतिदिन निश्चित समय पर निकलना,जाड़ा-गर्मी और बरसात का निश्चित समय पर आना-जाना,रात और दिन का निश्चित समय पर विश्व के क्रिया-कलापों में परिवर्तन करना आदि सम्पूर्ण जगत के लिए सीख देने वाला विधान है। प्रकृति कभी इस विधान की अवहेलना नहीं करती और जब करती है तो विनाश की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। मनुष्य को प्रकृति के क्रिया-कलापों से शिक्षा लेनी चाहिए और सीमाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। तभी हमारे घर-परिवारों की भी सुचारू रूप से व्यवस्था होती है।
अभिप्राय है कि अपने घर-परिवारों में सुख शांति और पूर्ण खुशहाली लाने के लिए हमें विधि-विधान को समझना होगा।
आज मानव वैज्ञानिकों ने काफी तरक्की की है। वह विकास के पथ पर आगे बढ़ा है,परन्तु उसकी ये छोटी सी सफलता उसे गुमराह भी कर रही है। वह अपने ही विनाश के उपकरण तैयार करने लगा है।
मनुष्य को मानना पड़ेगा कि संसार में कोई भी प्राकृतिक या मानवीय अव्यवस्था केवल मानव जाति को ही सर्वाधिक क्षति पहुँचाती है। उसके घर-परिवार सबसे पहले प्रभावित होते हैं। उसके बच्चों की शिक्षा-दीक्षा रुक जाती है,उनका मानसिक विकास कुंठित हो जाता है। आर्थिक ढांचा चरमरा जाता है और तब वह राम-राम रटना शुरू कर देता है।
घर-परिवार संसार का सूत्र रूप है। वह संसार की इकाई है। घर-परिवारों का वृहद समूह ही संसार है। संसार को चलाने के लिए हमें घर परिवार को सुचारु रूप से चलाना होगा।
आज बड़े दु:ख की बात तो यह है कि घर-परिवार विघटन की ओर जा रहे है। समाज टूट रहा है,अपनत्व का भाव समाप्ति पर है। स्वार्थ सर्वोपरि है। बुजुर्गों का मज़ाक उड़ाया जाने लगा है। बड़ों का सम्मान अब सपने में है। यह स्थिति हमारे बिखरते और टुकड़े-टुकड़े होते भावी समाज की द्योतक है।
आज ऊपर से नीचे तक व्यवस्था चरमराई हुई है। हम दूसरों की संस्कृति के पीछे भाग रहे हैं। हम अपना पथ छोड़ चुके हैं। हमें संभलना होगा। अपने घर-परिवारों की सुख शांति के लिए गंभीरता से अपने बुजुर्गों के बताए हुए मार्ग पर चलना होगा। प्रकृति का अनुशासन मानना होगा और परम सत्ता के प्रकोप से डरना होगा।
परिचय-विजयलक्ष्मी खरे की जन्म तारीख २५ अगस्त १९४६ है।आपका नाता मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ से है। वर्तमान में निवास इलाहाबाद स्थित चकिया में है। एम.ए.(हिन्दी,अंग्रेजी,पुरातत्व) सहित बी.एड.भी आपने किया है। आप शिक्षा विभाग में प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हैं। समाज सेवा के निमित्त परिवार एवं बाल कल्याण परियोजना (अजयगढ) में अध्यक्ष पद पर कार्यरत तथा जनपद पंचायत के समाज कल्याण विभाग की सक्रिय सदस्य रही हैं। उपनाम विभा है। लेखन में कविता, गीत, गजल, कहानी, लेख, उपन्यास,परिचर्चाएं एवं सभी प्रकार का सामयिक लेखन करती हैं।आपकी प्रकाशित पुस्तकों में-विजय गीतिका,बूंद-बूंद मन अंखिया पानी-पानी (बहुचर्चित आध्यात्मिक पदों की)और जग में मेरे होने पर(कविता संग्रह)है। ऐसे ही अप्रकाशित में-विहग स्वन,चिंतन,तरंग तथा सीता के मूक प्रश्न सहित करीब १६ हैं। बात सम्मान की करें तो १९९१ में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘साहित्य श्री’ सम्मान,१९९२ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा सम्मान,साहित्य सुरभि सम्मान,१९८४ में सारस्वत सम्मान सहित २००३ में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल की जन्मतिथि पर सम्मान पत्र,२००४ में सारस्वत सम्मान और २०१२ में साहित्य सौरभ मानद उपाधि आदि शामिल हैं। इसी प्रकार पुरस्कार में काव्यकृति ‘जग में मेरे होने पर’ प्रथम पुरस्कार,भारत एक्सीलेंस अवार्ड एवं निबन्ध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त है। श्रीमती खरे लेखन क्षेत्र में कई संस्थाओं से सम्बद्ध हैं। देश के विभिन्न नगरों-महानगरों में कवि सम्मेलन एवं मुशायरों में भी काव्य पाठ करती हैं। विशेष में बारह वर्ष की अवस्था में रूसी भाई-बहनों के नाम दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कविता में इक पत्र लिखा था,जो मास्को से प्रकाशित अखबार में रूसी भाषा में अनुवादित कर प्रकाशित की गई थी। इसके प्रति उत्तर में दस हजार रूसी भाई-बहनों के पत्र, चित्र,उपहार और पुस्तकें प्राप्त हुई। विशेष उपलब्धि में आपके खाते में आध्यत्मिक पुस्तक ‘अंखिया पानी-पानी’ पर शोध कार्य होना है। ऐसे ही छात्रा नलिनी शर्मा ने डॉ. पद्मा सिंह के निर्देशन में विजयलक्ष्मी ‘विभा’ की इस पुस्तक के ‘प्रेम और दर्शन’ विषय पर एम.फिल किया है। आपने कुछ किताबों में सम्पादन का सहयोग भी किया है। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी रचनाओं का प्रसारण हो चुका है।