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प्रकृति की व्याकुलता

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष……..

एक शाम प्रकृति को देखा,
मैंने गुमसुम-गुमसुम।
रहा ना गया,बोल पड़ी मैं-
“हे! प्रकृति बावरी,
क्यों है उदास री ?
होंठों पर संत्रास लिए,
आँखें कहने को उतावली।
पंच महाभूत तेरे अधीन,
फिर क्यों व्यतिरेक ?
तू प्राणदायिनी,
शक्तिशालिनी,
जीवन का आधार
विधाता का पावन उपहार।
फिर बात हुई क्या ?
कुछ मुझे तू बता।”
आँसू छलकाती प्रकृति बोली,-
“छोटे-छोटे पौधे देखो मुरझाते हैं
आँखें जलती,होंठ शुष्क हो जाते हैं।
इंसान ने प्रकृति में घोल दिया है जहर,
काट दिए हैं वृक्ष,
साँस लेना लगता दूभर
बीमारियों से जूझ रहा मानव,
प्रकृति का करके अनादर।
कर रहा मानवता को नष्ट,
हुआ है क्यों कर इतना भ्रष्ट ?
यही दु:ख मुझे सताता है,
कलेजा मुँह को आता है।
क्यों अमृत के प्याले में,
जहर उसने भर डाला है !
कोई यह उसे पढ़ाए पाठ,
प्रकृति से है जीवन का ठाठ।
अभी है वक्त यही है वक्त,
करें कुदरत का वह सम्मान,
वृक्षारोपण और प्रदूषण का संज्ञान॥

परिचय-राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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