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वेदना या प्यार हो!

कल्पना शर्मा ‘काव्या’
जयपुर (राजस्थान)
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काव्य संग्रह हम और तुम से…

तुम विरह की वेदना हो या मिलन का प्यार हो,
सजल नयन घन-घटा हो या प्रथम अभिसार हो।

तुम चुभन हो या कसक हो या सुगंधित गंध हो,
तुम तपन हो या जलन हो या पवन स्वच्छंद हो।

तुम संकुचित छाँव हो या चमकती धूप हो,
टूटती लौ हो दीए की या दमकता रूप हो।

शांत हो,एकांत हो तुम या हृदय संगीत हो,
राग-लय स्वर-ताल हो या मधुरिम गीत हो।

तुम किनारा हो भँवर हो या नदी की धार हो,
शांत जल हो या हो तूफां,या मुखर मँझधार हो।

गद्य हो संगीत हो या रूप-रस श्रृंगार हो,
‘कंचन’-सी कल्पना का तुम सिसकता प्यार हो।
तुम विरह की वेदना हो या मिलन का प्यार हो…॥