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सुरमई शामों के साए

कर्नल डॉ. गिरिजेश सक्सेना ‘गिरीश’
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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काव्य संग्रह हम और तुम से

तुम बिन सुरमई शामों के साए, लाओ,
मैं चुन-चुन कर उन्हें सजा दूंगा।
तुम सिसक-सिसक आहों के गीत गाओ,
मैं अश्कों का संगीत बहा दूँगा॥

मधुबन के झुलसे सायों में,
बीते वसंत की सूनी बाँहों में।
तुम चुन-चुन आशाओं के दीप जलाओ,
मैं साहस की ज्योति जला लूँगा॥
तुम बिन सुरमई शामों के साए…

कोयल की कुहू-कुहू के तीखेपन में,
चकोर चाँद की अनबन में।
साथी तुम स्वयं साज़ बन जाओ,
मैं अनजाने गीतों की पीर बहा दूँगा॥
तुम बिन सुरमई शामों के साए…

तृषित नयन का नीर,
पीड़ित दुखी हृदय की पीर।
तुम बैठ कसक दर्दीला कोई गीत सुनाओ,
मैं भी दर्दीला संगीत सुना दूँगा॥
तुम बिन सुरमई शामों के साए…

शशि की मत मंजुलता को देखो,
बदली की मत चंचलता को देखो।
तृषित पपीहे की तृष्णा तुम बन जाओ,
मैं स्वाति की बूंद पिला दूँगा॥
तुम बिन सुरमई शामों के साए,
लाओ…

परिचय-कर्नल डॉ. गिरिजेश सक्सेना का साहित्यिक उपनाम ‘गिरीश’ है। २३ मार्च १९४५ को आपका जन्म जन्म भोपाल (मप्र) में हुआ,तथा वर्तमान में स्थाई रुप से यहीं बसे हुए हैं। हिन्दी सहित अंग्रेजी (वाचाल:पंजाबी उर्दू)भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. सक्सेना ने बी.एस-सी.,एम.बी.बी.एस.,एम.एच.ए.,एम. बी.ए.,पी.जी.डी.एम.एल.एस. की शिक्षा हासिल की है। आपका कार्यक्षेत्र-चिकित्सक, अस्पताल प्रबंध,विधि चिकित्सा सलाहकार एवं पूर्व सैनिक(सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी) का है। सामाजिक गतिविधि में आप साहित्य -समाजसेवा में सक्रिय हैं। लेखन विधा-लेख, कविता,कहानी,लघुकथा आदि हैं।प्रकाशन में ‘कामयाब’,’सफरनामा’, ‘प्रतीक्षालय'(काव्य) तथा चाणक्य के दांत(लघुकथा संग्रह)आपके नाम हैं। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं। आपने त्रिमासिक द्विभाषी पत्रिका का बारह वर्ष सस्वामित्व-सम्पादन एवं प्रकाशन किया है। आपको लघुकथा भूषण,लघुकथाश्री(देहली),क्षितिज सम्मान (इंदौर)लघुकथा गौरव (होशंगाबाद)सम्मान प्राप्त हुआ है। ब्लॉग पर भी सक्रिय ‘गिरीश’ की विशेष उपलब्धि ३५ वर्ष की सगर्व सैन्य सेवा(रुग्ण सेवा का पुण्य समर्पण) है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य-समाजसेवा तो सब ही करते हैं,मेरा उद्देश्य है मन की उत्तंग तरंगों पर दुनिया को लोगों के मन तक पहुंचाना तथा मन से मन का तारतम्य बैठाना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद, आचार्य चतुर सेन हैं तो प्रेरणापुंज-मन की उदात्त उमंग है। विशेषज्ञता-सविनय है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“देश धरती का टुकड़ा नहीं,बंटे हुए लोगों की भीड़ नहीं,अपितु समग्र समर्पित जनमानस समूह का पर्याय है। क्लिष्ट संस्कृतनिष्ठ भाषा को हिन्दी नहीं कहा जा सकता। हिन्दी जनसामान्य के पढ़ने,समझने तथा बोलने की भाषा है,जिसमें ठूंस कर नहीं अपितु भाषा विन्यासानुचित एवं समावेशित उर्दू अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग वर्जित न हो।”

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