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प्रेम

कृष्ण कुमार यादव
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)
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काव्य संग्रह हम और तुम से…..

प्रेम एक भावना है,
समर्पण है,त्याग है
प्रेम एक संयोग है,
तो वियोग भी है।
किसने जाना प्रेम का मर्म,
दूषित कर दिया लोगों ने
प्रेम की पवित्र भावना को,
कभी उसे वासना से जोड़ा
तो कभी सिर्फ उसे पाने से।
भूल गये वे कि प्यार सिर्फ,
पाना ही नहीं खोना भी है
कृष्ण तो भगवान थे,
पर वे भी न पा सके राधा को
फिर भी हम पूजते हैं उन्हें।
पतंगा बार-बार जलता है,
दीए के पास जाकर
फिर भी वो जाता है,
क्योंकि प्यार
मर-मिटना भी सिखाता है॥

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