शिवनाथ सिंह
लखनऊ(उत्तर प्रदेश)
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मानवी और रमणीक को हवनकुंड के चारों ओर सात फेरे लिए हुए अभी कुछ ही दिन बीते थे कि,एक दिन रमणीक ने मानवी से कहा-‘मानवी, आज रात को हमें एक पार्टी में चलना है इसलिए तुम अपनी तैयारी पूरी करके रखना और यदि ठीक समझो तो अपनी शादी वाली पोशाक ही पहन लेना, सुंदर लगोगी।’ मानवी मुस्कराई तो पर बोली कुछ नहीं।
पार्टी का प्रबन्ध एक शानदार होटल में था। वहाँ पहुँचे तो रमणीक की मुलाकात रूपेश से हुई। यद्यपि,रमणीक की उससे पहली मुलाकात थी,फिर भी बातों ही बातों में वे दोनों काफी घुल-मिल गए। वहाँ से लौटते समय ना जाने क्या हुआ कि,मानवी ने खिलखिलाते हुए स्वयं ही रूपेश को घर आने का न्यौता दे डाला और रमणीक को कुछ बोलने का अवसर तक न मिल पाया ।
कुछ ही समय बीता होगा कि,एक दिन रूपेश बताए गए पते पर मानवी के पास पहुँच गया। धीरे-धीरे विवाह से पूर्व स्थापित सम्बन्धों को दोहराते हुए मानवी और रूपेश उस मंजिल तक पहुँच गए,जिसकी कल्पना रमणीक जैसा व्यक्ति सपने में भी नहीं कर सकता था।
यह सब खेल चल ही रहा था कि एक दिन रमणीक को सब पता चल गया। पता क्या चल गया,बल्कि उसने अपनी आँखों से वह सब-कुछ देख लिया,जिसे किसी विवाहित स्त्री के पाप की पराकाष्ठा कहा जाता है। रमणीक के सामने मानवी का एक नया चेहरा उजागर हो चुका था। बस,उसी दिन से परिवार में भीषण द्वंद शुरु हो गया। रमणीक ने मानवी को कईं तरह से ऊँच-नीच इत्यादि सब-कुछ समझाने की कोशिश की, पर उसके व्यवहार में लेशमात्र भी परिवर्तन ना होते देख रमणीक के संयम ने जवाब देना शुरु कर दिया। फिर रमणीक ने मन ही मन मानवी के बारे में कुछ ऐसा निर्णय ले लिया, जिसे हमारा समाज आक्रोश या प्रतिशोध की पराकाष्ठा कहता है ।
रमणीक ने किसी हिल स्टेशन पर जाने की योजना बनाकर अपनी बात मानवी के सामने रख दी। मानवी ने कभी कोई हिल स्टेशन देखा नहीं था, इसलिए वह तुरंत सहमत हो गई और फिर दोनों शिमला जा पहुँचे। रमणीक के मन में प्रतिशोध की भावना अपनी चरम सीमा पर थी। उसने इधर-घूमने में थोड़ा समय बिताया तो,पर उसने मानवी को एक पहाड़ी से ऐसे समय पर धक्का दे डाला जब दूर-दूर तक कोई देखने वाला नहीं था।
इधर,रमणीक मानवी को पहाड़ी से गिरते हुए देखकर अन्दर ही अन्दर खुश हो रहा था तो दूसरी ओर मानवी निर्बाध रूप से लुढ़कती जा रही थी और उसकी चीखें उस वीरान जगह पर दूर-दूर तक गूँज रहीं थींं। रमणीक कभी इधर तो कभी उधर भागने का दिखावा करते हुए कुछ लोगों के इकट्ठा होने का इंतजार कर रहा था,जिससे उस घटना को दुर्घटना का मूर्तरूप देने में सफल हो सके। हुआ भी कुछ ऐसा ही,और सबके अथक प्रयासों के उपरांत मानवी का क्षत-विक्षत निर्जीव शरीर सबके सामने था।
अवैध सम्बन्धों से उपजे प्रतिशोध की यह पराकाष्ठा थी। एक खुशहाल परिवार पूरी तरह से बर्बाद हो चुका था।
परिचय-शिवनाथ सिंह की जन्म तारीख १० जनवरी १९४७ एवं जन्म स्थान धामपुर(बिजनौर,उत्तर प्रदेश )है। प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री सिंह की शिक्षा सिविल इंजीनियरिंग है और विद्युत विभाग से २००५ में अधिशाषी अभियन्ता पद से सेवानिवृत्त हैं। रुचि-साहित्य लेखन,कला एवं अध्यात्म में है। इनकी प्रकाशित पुस्तकों में कविता संग्रह(२०१४) सहित लेख,लघुकथा एवं कहानी संग्रह(२०१८) प्रमुख है। मुक्तक संग्रह प्रकाशन प्रक्रिया में है। रचनाएँ विभिन्न पत्रिकाओं एवं पत्रों में विविध साहित्य के रुप में प्रकाशित हैं। लेखनी की वजह से विभिन्न संस्थाओं से अनेक सम्मान-पत्र एवं प्रशस्ति-पत्र प्राप्त हैं।