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प्रतिकार

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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हाय! वो कुचल गया,
सैंकड़ों पदों से मर्दित
असंख्य भावनाओं से शोषित,
मेरा अन्तर दहल गया।
हर पल्लव पर रक्त,
मसला वह फूल रज-युक्त
बता रहा था-
जीवन का उपहार।
किसी ने ना सुना,
क्रंदन और चीत्कार
मेरी आत्मा कर उठी पुकार,
मेरे कर बढ़े अनजानी वेदना से,
सोचा था पहनाऊंगी
संवेदनाओं का हार।
मैंने स्पर्श किया,
आह! शूल चुभ गए
सुकोमल कर से,
बह गई रक्तधार।
मैं वो पीड़ा,
वो कसक
वो वेदना,
आज तक ना भुला पाई॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।