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दिवाली-शुभकामना

योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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श्रम का मोल सदा बड़ा है,
श्रम से ही आती हरियाली;
श्रम से आया जब रामराज्य-
श्रम से ही आई दिवाली।

अशुभ अलक्ष्मी के जन्म बाद-
होता है जन्म शुभ लक्ष्मी का;
और विपन्नता के बाद ही-
होता आवाहन लक्ष्मी का

यह दिवाली फिर है आई-
दुकानें आईं सड़कों पर;
पैसे आए जेब से बाहर-
आफत आई कड़कों पर।

दीए जगमग करते देखो-
हर छज्जे और मुंडेरों पर;
उनके घर भी तो देखो-
श्रम बहा जहाँ कुबेरों पर।

क्या थाली में दीप सजे हैं-
क्या हुई छपरी में दीया-बाती;
क्या पटाखों की गूँज में हैं-
बच्चों की बातें इठलातीं।

बहा पसीना,श्रम पिरोना-
जो धन-चादर नित बुनते हैं;
बुन दिवाली स्वप्न सलोना-
क्या नहीं वे सर धुनते हैं।

लक्ष्मी के तो नाम अनेक-
चाहे जिससे वे जुड़ जातीं;
घर में गृह-लक्ष्मी बनातीं-
भाग्य-लक्ष्मी जो कहलातीं।

उन्हीं लक्ष्मियों की खोज में-
लक्ष्मियाँ नित ही हैं रहतीं;
दिवाली में फिर कैसे न वे-
लक्ष्मीजी की माला जपतीं ?

अभावों में रहकर ही जो-
नित लक्ष्मी आस में जीते हैं;
वे ही तन-मन बिसराकर के-
नित घूंट जहर का पीते हैं।

फिर भी कहते लक्ष्मी माता-
करें स्वर्ण,अन्न की वृद्धि;
परिवार की हो श्री-वृद्धि-
और बढ़े घर की समृद्धि।

दीपावली पावन पर्व है,
जुड़े हमसे आपकी भावना।
स्वीकार करें हमारे अंतर्मन की-
दीपावली की शुभकामना॥

परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”

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