कुल पृष्ठ दर्शन : 14359

You are currently viewing संत तुलसीदास:महान व्यक्तित्व और कृतित्व

संत तुलसीदास:महान व्यक्तित्व और कृतित्व

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

**********************************************************************

महाकवि गोस्वामी तुलसीदास (२४ जुलाई) जयंती स्पर्धा विशेष

हिन्दी साहित्यकाश का कविकुल कुमुद कलाधर कविवरेण्य महाकवि गोस्वामी संत तुलसीदास जाज्वल्यमान भास्कर हैं। वे न केवल एक महान् सन्त और भक्ति सागर स्वरूप थे,अपितु वे लोकमंगल के जन-मन सुखदायक समाज सुधारक,दार्शनिक,क्रान्तिकारी प्रचेता और ४० काव्य ग्रन्थों के महान् युगान्तकारी कालजयी रचनाकार हैं। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन कवियों में पुरोधा,गौरव शिखर और श्रीराम भक्ति सम्प्रदाय के प्रवर्तक महाकवि माने जाते हैं। वे चतुर्वेदों,आरण्यक,ब्राह्मण ग्रन्थों,वेदांगों,वेदान्तशास्त्रों,रामायण,महाभारत,समस्त नीति धर्मशास्त्रों,काव्यशास्त्रों के महान् अध्येता और प्राकृतिक देवी-देवताओं के मध्य मानवीय तारतम्यता और समन्वयवाद को अपने साहित्य सागर में कूट-कूट कर पिरोया है।
संत तुलसीदास जी का जन्म उत्तरप्रदेश के बाँदा मण्डलान्तर्गत राजापुर नामक गाँव में एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में सन् १५३२ ई. में हुआ। मूल नक्षत्र में जन्म के कारण अशुभ मानकर माता-पिता ने उन्हें जन्म लेते ही त्याग दिया। अतएव,उन्हें अपना बाल्यकाल की प्रारम्भिक अवधि भिक्षाटन करके बिताना पड़ा। कुछ कालान्तर के बाद उस भटकते बालक को बाबा हरिहर दास जी ने शरण दी,और अपना शिष्यत्व प्रदान कर समुचित शास्त्रों की शिक्षा-दीक्षा प्रदान की।
गोस्वामी जी का परिणय संस्कार दीनबन्धु पाठक की सुपुत्री रत्नावली के साथ हुआ। पत्नी के प्रति अतीव अनुराग के कारण एक बार तुलसीदास जी पत्नी के साथ उनके मैके तक पहुँच गये,जिससे उनकी पत्नी बहुत क्रोधित हुई और फटकारती हुई बोली-
लाज न आवत आपको,दौरे आयहु साथ। धिक् धिक् ऐसे प्रेम को,कहौं मैं नाथll अस्ति चर्ममय देहसम,ता मैं ऐसी प्रीति। ऐसी जो श्रीराम में होति,न भव भीतिll
धर्मपत्नी की डाँट से विचलित भार्या प्रेमासक्ति से विरक्त तुलसीदास का जीवन एकदम परिवर्तित हो गया,जिसने उन्हें महानतम रामभक्ति का प्रचेतस सह महान् सन्त महाकवि के रूप में परिवर्तित कर दिया। उन्होंने अपना जीवन माँ सरस्वती की अनुपम कठिनतर साधना में अर्पित कर दिया। इस क्रम में वे कभी चित्रकूट,कभी अयोध्या और कभी काशी में रहकर साधना करने लगे। रामभक्ति शाखा की दीक्षा उन्होंने स्वामी रामानंद जी के गुरुत्व में ग्रहण की। उन्होंने गुरुकृपा से अनेक कालजयी सारस्वत काव्यों की श्री रचना की। वे भुजंग सम खूब इतस्ततः भ्रमण किया। रामचरितमानस जैसे कालजयी रामभक्ति परिपूत महाकाव्य की रचना करनेवाले महाकवि तुलसीदास जी ने सन् १६२३ई. ( संवत् १६८० वि.)में काशी के असि घाट पर निर्वाण प्राप्त किया-
संवत् सोलह सौ असी,असि गंग के तीर। श्रावण शुक्ला सप्तमी,तुलसी तजौ शरीरll
तुलसी साहित्यिक कृतित्व और व्यक्तित्व देखें तो गोस्वामी श्री तुलसीदास द्वारा विरचित ४० काव्यों की रचना की गई,पर अब तक उनकी १२ प्रमाणिक रचनाएँ ही उपलब्ध होती हैं-रामलला नहछू,वैराग्य संदीपनी,बरवै रामायण,रामचरितमानस, पार्वती मंगल,जानकी मंगल,रामाज्ञा प्रश्नावली ,दोहावली,कवितावली,गीतावली,श्रीकृष्ण गीतावली तथा विनय पत्रिका,किन्तु गोस्वामी तुलसीदास की युग युगान्तर जनमन चित्तभावन कीर्ति पताका उत्तमोत्तम महाकाव्य श्री रामचरितमानस ही है,जो सम्पूर्ण मानव दर्शन ही है। हिन्दी साहित्य ही क्या,सम्पूर्ण विश्व साहित्य में ऐसा अद्वितीय लोकमानस मंगल का काव्य दुर्लभ है। कवितावली,गीतावली,श्रीकृष्ण गीतावली जैसे काव्य सृजन उनकी सरस,सरल और सुबोधगम्य सुन्दरतस रचना कुसुम मानी जाती हैं। विनय पत्रिका की भक्तिपूरक पदरचना उन्हें उच्चकोटि के दार्शनिक कवि के रूप में प्रस्तुत करती है। ठेठ ग्रामीण अवधी भाषा में निर्मित रामलला नहछू और बरवै रामायण जैसी काव्य रचना तुलसीदास के ग्रामीण कवित्व की नैपुण्यता में चार चाँद लगाती है।
महाकवि तुलसीदास की भक्ति भाव साधना लोकमंगलकारी और परमार्थदर्शी चेतना का प्रतीमानक है। अतः वे जन-मन के महाचिन्तक महान् लोकनायक राष्ट्रवाद के प्रवर्तक सर्वश्रेष्ठ कवि रुप में आसीन हैं। तुलसीदास की समस्त रचनाएँ समग्र मानव जाति के कल्याण,सुख,अस्मिता और त्याग न्याय पूर्ण समरसता से परिपूर्ण हैं। विशेषकर रामचरितमानस ने तो वैदिक सनातन हिन्दू धर्माधारित समुदाय और अखिल भारतीय समाज को रामभक्ति और प्रेम के सागर में डूबो दिया है। त्याग,शील,गुण,नीति और मानवीय आदि अन्तर्मन सह बाह्य प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूरित तुलसी के आराध्य और मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम हैं। इस प्रकार भारतीय मानवीय संवेदनाओं,आदर्शवाद, यथार्थवाद,प्रगतिवाद और ईश्वरीय एकात्मवाद के विशाल भावों से परिपूरित रामचरितमानस महाकाव्य भक्ति,शक्ति और परस्पर सौहार्द्र स्नेह सरिता में सराबोर समन्वयवादी दृष्टि का परिचायक है। भगवान् राम को परमात्म स्वरूप अपने आराध्यदेव के रूप में माना और चातक को अपना आदर्श बनाया-
एक भरोसो एक बल,एक आस विश्वास। एक राम घनस्याम हित,चातक तुलसीदास॥
तुलसीदास कलापक्ष के महान् शृङ्गारक हैं। काव्यशास्त्र के महान् ज्ञाता तुलसीदास समस्त काव्य शैलियों के सफल कलाकार हैं। प्रबन्ध काव्य और मुक्तक-दोनों ही विधाओं में महाकवि तुलसी का कोई सानी नहीं है। रामचरितमानस प्रबन्ध काव्यात्मकता का चूड़ान्त निर्दशन है। यद्यपि,कवितावली,जानकी मंगल और पार्वती मंगल आदि काव्य रचनाएँ भी प्रबन्ध काव्य शैली की सुन्दरतम रचना मानी गई है,परन्तु रामचरित मानस संसार का सर्वोत्कृष्ट प्रबन्धात्मक महाकाव्य है। तुलसीदास जी अलंकार संसार के अनुपम जौहरी हैं। उन्होंने सांगरूपक,उपमा,उत्प्रेक्षा और व्यतिरेक आदि अलंकारों का अद्भुत मनोरम वर्णन अपने महाकाव्यों में किया है। सांगरूपक का चारुतम प्रयोग यहाँ अवलोकनीय है-
उदित उदय गिरि मंच पर,रघुवर बाल पतंग। बिक से संत सरोज सम,हरषे लोचन भृंगll
गोस्वामी जी की काव्य रचनाओं में नवरस संसार समाहित है। रामचरितमानस भक्ति, वीर,श्रंगार,करुण,वात्सल्य और हास्य आदि नवरसों का सप्तसिन्धु बन अतिशय उदात्त, अतुलनीय,गहनतम और आत्मविभोर कर देने वाली विश्व की सर्वोत्कृष्ट रचना है। अतुलनीय महाकवि तुलसी की यह पंक्ति अवलोकनीय है-
देखि देखि रघुवीर तन,उर मानस धरि धीर। भरे विलोचन प्रेमजल,पुलकावलि शरीरll
रामचरितमानस मुख्यतः शान्तिरस का महाकाव्य है,जिसमें संसार के कल्याण और शान्ति स्थापना के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम का अवतरण हुआ है। शान्ति रस की अनुपम छटा अवलोकनीय है-
अब लौ नसानी,अब न नसैहों।

वस्तुतः गोस्वामी संत महाकवि तुलसीदास हिन्दी साहित्य ही नहीं ,अपितु समस्त भारत वर्ष के मानसपटल में भक्ति और प्रेमसंचारक चिन्तक नायक सर्वोच्च कवि हैं। रामभक्ति की जो अविरल मोक्षदायिनी पावन धारा जन मन में उन्होंने प्रवाहित की है,उसमें अवगाहन कर समस्त सनातनधर्मी सहृदय भक्तों को समरसता के एक चारुतम एकता के सूत्र में आज तक बाँधती रही है। वस्तुतः महाकवि तुलसीदास जी हिन्दी साहित्य के सूर्य हैं,जिनके अरुणिम काव्य प्रकाश के बिना हिन्दी साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती है।

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

Leave a Reply